Angika Kavita | अंगिका कविता
खेत | Khet
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
खेत बचाय रs हुअ' उपाय,ऊ छेकै बड़s लड़ाय!
खेत केना क' खेत रैतै,हौ सोचै मँ भिड़लs जाय!
कोय कह' जने नै,कोय कही छै पानी रs अभाव!
बिक' द' आँख मूनी क' कम्पनी क' जीत' द' दाव!
कंपनी बालाँ हौ बेची क',दोगुन्ना करी लेतै कमाय!
कोय वहाँ प' घर बनैतै,कोय कलोनी देथौं बसाय!
यह' नाकी खेत घटतै,किसान मजूर होभ' कंगाल!
आगू-आगू देखल' जैहs,जब' होथौं बड़s कमाल!
गामs मँ ढुकलs जैतै शहर,तों सोचत' रहs नहर!
अनाज की,टेबलेट खैहs,नाचत' रैहs आठो पहर!
सरकारs रs आस छोड़ी,आपनँ सँ लगाबs जोर!
आकेल्लो लोगँ नहर खानै छै,रोपे छै बन-घनघोर!
आपनs हाँथ जगतनाथ,बनाय बास्तँ रहs तैयार!
अपना प' भरोसs करी,बचाय रखs घर-परिवार!
अरुण कुमार पासवान
०४ सितम्बर,२०२०
Angika Kavita | अंगिका कविता
खेत | Khet
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
No comments:
Post a Comment