हय नै सोचोॅ | अंगिका गजल | शम्भुनाथ मिस्त्री
Hai Nai Sochow | Angika Gazal | Shambhunath Mistry
हय नै सोचोॅ तोहें कुछू करै नै पारोॅ,
सब कुछ होतै कखनूँ अपनोॅ मन नै हारोॅ I
छँटतै मेघ निकलतै सूरूज मौसम खिलतै,
नै छै देरी आबै में फनु दिन उजियारोॅ I
जिनगी हौ, जब मूँ खोलै तेॅ मुस्की फूटै,
पीरा छै तेॅ ढँकोॅ करौ नै कभूँ उघारोॅ I
केतनोॅ गुजगुज छै अन्हार घिरलोॅ अछोर तक,
एक दिया देॅहरी पर बड़ी सुमन सें बारोॅ I
शम्भु चलोॅ सम्हली कें भीड़ निरापद नै छै,
नै छै सबके उजरोॅ मोॅन, बहुत्तय कारोॅ I
– शम्भुनाथ मिस्त्री.
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