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Friday, September 6, 2019

आपनो भाषा | अंगिका कविता | अरुण कुमार पासवान | Aapnow Bhasha | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

आपनो भाषा
अंगिका कविता | अरुण कुमार पासवान

खूब गुमान छै हमरा-
आपनो धरती,आपनो लोग
आरो आपनो भाषा के।
हौ भाषा,जेकरा में सुनलियै,
बोललियै पैल्हो शब्द।
'शब्द',जे आदमी के, ईश्वर के
सब सँ बड़ो उपहार छेकै।
हौ भाषा,जेकरो स्वाद
माय के दूध नाकी,
जेकरो अनुभूति माय के दुलार रंग,
कोय लागलपेट नै,खाली लाड़,
ममता भरलो,खांटी प्यार।
आरो भी भाषा पढ़लियै-सिखलियै,
तरह-तरह के ज्ञान अर्जलियै
आरो मौका लागलै ते
बघारबो करलियै।
लेकिनआपनो भाषा में जे रंग-
बाजै छै गाल,निकलै छै हाल,
आरो कहाँ वैन्हो कमाल?
यही सँ देखो सौँसे मुलुक घुरी लेलियै
लेकिन अंगिका नै भुलैलियै ;
आरो भाषा सँ हाथ मिलैलियैे,
आपनो अंगिका के अंग लगैलियै।




Angika Poetry - Aapnow Bhasha |  आपनो भाषा 

Poet - Arun Kumar Paswan |  अरुण कुमार पासवान 

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