सब भाषा सें भारी
अंगिका कविता | शम्भुनाथ मिस्त्री
सब संग्ती सब साथें छै अब
सबके रस्ता एक,
माय सिखैलके साथ रहोॅ
सबके छै एक्के टेक।
जे भाषा में गीत सुनैलकै
आबोॅ निंदिया रानी,
जे भाषा में बचपन कटलै
सुनलों कथा-कहानी।
जे भाषा कें अँगुरी पकड़ी
ठुमकी ठुमकी चललौं,
जे भाषा ने शान बढ़ैलके
कहियो हाथ नै मललौं।
जे भाषा माटी सन सोन्होॅ
लोरी फगुआ गीत,
गौना ब्याह परब में गूँजै
जे भाषा संगीत।
जे भाषा में नातोॅ रिश्ता
फूलोॅ रं महकउवा,
जे भाषा सूनी कै गगलै
साँझ बिहाने कउवा।
जे भाषा में चंदा मामा
सुरुज बबा के ध्यान,
जे भाषा आकाश दिखैलकै
देलकै पेॅहलोॅ ज्ञान।
अंग देश के भाषा आंगी
गोटे देश पसरलोॅ,
देश प्रेम के बीज सभै में
आंगी ने छै भरलोॅ।
चलोॅ साथ मिल सब्भै बापुत
भाय बहिन महतारी,
अँगिका पड़तै आय सभै पर
सब भाषा सें भारी।
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