अईहऽ परदेशी फेनू कभी गाँव म॑
अंगिका गीत | महेंद्र प्रसाद निशाकर
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
सुस्ताय लिहऽ तनी अमरैय्या छाँव म॑,
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।।
बगिया म॑ कोयल, कुहू-कुहू बोलै,
मिश्री के घोल जेना तन-मन म॑ घोलै ।
रूनझुन पायल बोलै पनिहारी गाँव म॑,
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।।
पुरबा संगें, गेन्दा चमेली इठलाबै,
नद्दी के पानी सबके प्यास बुझाबै ।
स्वर्गऽ के सुख मिलै, पीपरऽ छाँव म॑
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।।
कहीं धान केआरी, कहीं केतारी खेत,
झूमै चना मटर तीसी सरसों समेत ।
अपनापन मिलै हर गली हर ठाँव म॑,
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।।
सुरूजऽ किरण ,जगाबै सबक॑ भोरै,
लछमी यहाँ घऽर आँगन बटोरै ।
फूल-फऽल अन्नऽ के ढेरी अँगना म॑,
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।
अईहऽ परदेशी, फेनू कभी गाँव म॑ ।।
कवि ⁃ महेंद्र प्रसाद निशाकर
अध्यक्ष, अखिल भारतीय साहित्यकार परिषद, भागलपुर
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