Angika Kavita | अंगिका कविता
देखो कैहनों समय ऐलै | Dekhow Kehnow Samay Ailaiey
by प्रेम शंकर झा | Prem Shankar Jha
खेतो के बैगन, झिंगा भूलैलै, आबे कीनै सब्जी हो
आबे घुमैल जाए छै पार्क ,भुलैले आँगना, बाड़ी हो
आबे चर पहिया सें किनैलऽ जाए छै तडकाडी हो
ऑनलाइन खाना मंगबै ,पिज्जा बर्गर के संगी होलै
देखो कैहनो समय ऐलै नया जमाना के रंग रंगी गेलै
बाबू अरू माय कोय नय बोलै उ कहै छै डैडी हो
आबे हीनको साथ छोडी कऽ बेटा पोसै छै डॅगी हो
आबे दादी, नानी के खिस्सा यहाँ कोय नय सूनै छै
आबे नुनुआ नेटो पर पोगो कार्टून दिनभर देखै छै
ऐहनो आदत खराब लागलै यूट्यूब के त संगी होलै
देखो कैहनो समय ऐलै नया जमाना के रंग रंगी गेलै
माय के चप्पल खाय रोजे बच्चा पढैल जाय छलै
कानला पर एक टकिया के सिक्का थमाय छलै
आबे माईहों छुटकारा लेलकै दैछे हॉस्टल पकड़ाय
ड्राइवर राखै भाडा पऽ जें दै छै स्कूल रोजे पहुंचाय
बापहों आबे की करतै नौकरिये तऽ जीवन संगी भेलै
देखो कैहनो समय ऐलै नया जमाना के रंग रंगी गेलै
बडो होय कऽ बच्चा बंगला आरू बालकनी बनावै छै
घरो रऽ ऐंगना, गामो रऽ चबूतरा आबे के अपनाबै छै
परती खेतो मऽ छौडा सब रऽ किरकेट खेलबो सपना होलै
आमीगाछी मँ ट्यूब अरू पीढा पऽ झूलबो सपना होलै
परव पावन्हौं में गांव सूना लागै, मस्तीयो बदरंगी भेलै
देखो कैहनो समय ऐलै नया जमाना क रंग रंगी गेलै
No comments:
Post a Comment