Angika Kavita | अंगिका कविता
सुबर्षा | Subarsha
by अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
रेल,कोसी-सेतु,फेरू बढ़ियाँ रोड,
बाँका रs फैक्ट्री मँ, गैसो भरैथौं!
कत्त' ठियाँ चुनौवा-गाय मिलै छै,
तोरा हौ मुर्रा भैंस मिल' पारै छौं।
नै बुझाय छौं त', बुझाय दै छिहौं,
हेकरे नाम कही छेै, 'मुन्हाफाड़'!
रेजाय,कम्मल सब कुछ मिलथौ,
आभरी जरियो नै लागथौं जाड़!
सुबर्षा ऐन्हs नै भै छै, सालेसाल!
सबदिन खेतs मँ नै रही छै हाल!
तिरिया-चरित्तर,पुरुषs रs भाग!
हेकरा मँ छुपलs रही छै कमाल!
योजना सिनी क', याद राखिहs!
पूरा त' होय छै,कतने साल बाद!
पूरा होय जाय!त' परभु-किरपा,
फैदे देतै,पूरा होय गेला रs बाद!
रेल-रोड बढियाँ,त' दिल्ली नै दूर,
देस-दुनियाँ, हिड़ी मारs, भरपूर!
बेपार करs,चाहे कराबs इलाज,
आय बम्बई,त' काल्हे भागलपुर!
आस-भरोसा पर चलै छै जिनगी!
असरे प' टिकलs दुनिया-जहान!
निरास होना मतलब?अधमरुवs,
घोलटी क' ताकतँ रहs असमान!
अरुण कुमार पासवान
21 सितंबर,2020
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