Angika Kavita | अंगिका कविता
बेचारी लड़की | Bechari Ladkee
by अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
अलग-अलग अखाड़ा सब रs,
कोय नै चलैवाला केकरे साथ!
केकरा कोंनची बोललs जाय!
लंका मँ सब कोय नौ-नौ हाथ!
केकरो सोच सामाजिक नै छौं!
खाली टोपी प' लागलs आँख!
ऊपर चिकनs-चाक मतर कि,
भीतर खीरा-रंग छै तीन फाँक!
गजबे बुझाय छौं है ठो बारात!
लोकनिया नै समधी,दुल्हे सब;
पाँच दफा बजना बराती साथँ!
सब रs सब,एकसँ-एक बेढब!
आय-माय हाँसी रैल्ही तरे-तर!
एक बिहा मँ कैसँ क' हेत्त' बर!
है हाल रेल्है त' बेचारी लड़की!
कुमारिये बैठी जेतै जीवन भर!
कोय्यो त' आगू बढ़ी क' आबै!
कोय्यो त' बढ़िया सँ समझाबै!
कि मिली-जुली क' सब सिनीं,
बस एक्के टा क' दूल्हा बनाबै!
घरँs मँ फाँट जखनी भै जाय!
पंचपुत्ती माय भै जाय अनाथ!
केकरा की बुझाब' कौनँ यहाँ?
लंका मँ सबकोय नौ-नौ हाथ!
अरुण कुमार पासवान
21 सितंबर,2020
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