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Wednesday, August 26, 2020

किनी द' किताब | Angika Kavita | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Kini Da Kitab | Arun Kumar Paswan

 

किनी द' किताब | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Kini Da Kitab | Angika Kavita | Arun Kumar Paswan
 
 
किनी द' किताब
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खुरपी लै क' कियारी कोड़भौं,
आबकी मतर जिद नै छोड़भौं,
मर-मजूरी सब रs करभौं हिसाब,
माय-बाबू हमरा किनी द' किताब।

क ख ग घ,ए बी सी डी पढ़भौं,
नेमना,लेरुआ ल' घाँसो गढ़भौं,
सकूल नै जैला सँ,लागै छ' खराब,
माय-बाबू हमरा किनी द' किताब।

अंगा-पैंट आरु जुत्ता किनबैभौं,
छोटे टा एक ठो बस्ता मंगबैभौं,
स्कूल भेजभs त' लागभौं नबाब,
माय-बाबू हमरा किनी द किताब।

पढ़ी-लिखी क'आफिस जैभौं,
मेहनत करी क' टका कमैभौं,
तोरा सिनी तखनी करिहोs रोबाब,
माय-बाबू हमरा किनी द' किताब।

तोरा सिनी क'अच्छर बतैभौं,
तब'नाम लिखै ल' सिखलैभौं,
टिप्पा मारै छs त' लागै छै खराब,
माय-बाबू हमरा किनी द' किताब।

मास्टर काकाँ रोज कही छौं,
'बच्चा कैन्हें बैठलs रही छौं,
आपनs धतूरा क बनाबs गुलाब!'
माय-बाबू हमरा किनी द' किताब।

              अरुण कुमार पासवान
                 21 अगस्त,2020 

किनी द' किताब | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Kini Da Kitab | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

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