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Saturday, August 22, 2020

भरोसौ | Angika Kavita | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष | Bharowsow | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh


भरोसौ | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Bharowsow | Angika Kavita | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh


कत्तो टूटै हमरा पर दुखौ के पहाड़
हमरा नैं बचाबो , टूटै दौ !
हमरा देतैं रहौ हौ कूबत
बस डरौ सें नैं काँपै लगै हमरौ हाड़ !

नैं माँगै छियौं हम्में ई भीख
दुखौ से भरलौ हमरौ हिरदें
नैं चाहै छै दुलार - पुचकार
दौ हमरा साहस कि दुखौ के जीती लौं !

चाहे जत्तै हुए जोर - जुलुम जिनगी पर
चाहे नैं रहै कोय हमरा बचबैय्या
हमरौ साहस , हमरौ दम नैं बोले बम
सब आफत - बयारौ में टिकलौ रहौं !

करतें रहै सभैं भीतरघात , देतैं रहै चोट
सरपट लुटी जाय हमरौ सभै संसार
नैं पनपै केकरौ लेली मनों तनियो खोट
नैं हुए कातर परान , नैं बिलखौं जार - जार !

हम्में नैं चाहे छी दुखौ सें दा तों तरान
बस दा दुखौ के समन्दर में तैरै के ताकत
हमरो बोझौ उठाय हमरा नैं करौ तों हल्का
हर बोझौ उठाय के दौ हमरा आत्मविश्वास !

दा हमरा हौ संवल , हौ सुभाव , हौ विवेक
नैं बौराबों सुखौ में , तोरौ मुँह रहे हमरौ लग
घोर विपत में चाहे रूठी जाय सौंसे दुनियां
तोरा प्रति हमरौ भरोसा इत्यो टा नैं टूटै !

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सौजन्य : गीतांजलि ( कवींद्र रवीन्द्र नाथ टैगोर )
अंगिका अनुवाद : रामचन्द्र घोष
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Bharowsow | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh

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