Angika Kavita | अंगिका कविता
साँझ भेलै | Sanjh Bhelai
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal
सांझ भेले
जियरा बौरैले
माननी के
कजरा बौरैले ।
ऐना संग
कजरा धार बनैलकै ।
सोलहो सिंगार
करी मन माननी
चौखट गेह
नयन अटकैलकै।
जोर जोर
बही पुरवैया
अंचरा उङाय
जूङा उरझैलकै ।
बदरा घुमङि
उमङि नभ मंङल
रस वर्षाय
सुगंध उङैलकै ।
16-5-20
Angika Kavita | अंगिका कविता
साँझ भेलै | Sanjh Bhelai
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal

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