Angika Kavita | अंगिका कविता
शहद में जेनां| Sahad Mein Jena
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal
शहद में जेनां
माछी ङुबै छै
उभ चुभ करै छै
आरो ङुबै छै
भितरे धंसै छै ।
प्रेमी मिललो
हम्मू ङुबलां
उभरे चुभ करै छी
ङुबले रहै छी ।
कत्ते टोकलको
लोगं बेदं
पासें पङोसें
कुछु नै बुझलां
ङुबतें रहलां
ङुबले रहै छी ।
आकंठ ङुबलो छी
प्रेम रसो में
मधु पियै छी ।
कल्पना घरो में
नाईका के संग
मधु में ङुबलो
साहित्य रसो में
दौनों रहै छी
मगन रहै छी ।
25-5-20

No comments:
Post a Comment