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Thursday, May 14, 2020

आदमी के बचाबो | Aadmi Ke Bhachabow | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Angika Kavita | Arun Kumar Paswan

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
आदमी के बचाबो | Aadmi Ke Bhachabow
अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan



रेलगाड़ी ऐलो होथौं,पता लागी गेलो होथौं,
बन पड़लै उदोग,लोग शहर सँ ऐलो होथौं!

घिरना होते होथौं,आरो डर ते लगथैं होथौं,
जपाल सिनी ऐलोै छै,तोरो मनें कैथैं होथौं!

सही बात,आभी समय ऐन्हे आबी गेलो छै,
हर आदमी के दोसरा सँ खतरा भै गेलो छै!

मतर,की करतिहो जौं तोरो आपनो रैतिहौं?
हियाव-असरा टूटला पर तोरा लंग ऐतिहौं?

हेहो,कोय मनुष केकरो बास्तँ पराया नै छै!
डूबै वाला बास्तँ तिनका भी सहारा बनै छै!

आपनो आरो पराया ते बूझै रो फेर होय छै,
पूरे संसार आपनो,नै ते संतको गैर होय छै!

पहुँचै वाला के कुटुम,अतिथि,आगत बूझो!
मनें जे नै मान्हों,ते आपनो शरणागत बूझो!

दूरी बनैले ते राखो,मतर ऐला के अपनाबो!
मौत दुश्मन सब रो,सब आदमी के बचाबो!
                          अरुण कुमार पासवान
                                13 मई,2020
 

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अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan



 

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