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Saturday, April 25, 2020

हाथ | Haath | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Angika Kavita | Arun Kumar Paswan

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
हाथ | Haath
अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan



जोन घरो में जतना हाथ,
हौ हड़िया में होतने भात,
कमाय ले आरो खाय ले।
हाथो में पाँच उँगरी होय छै,
नाम,काम अलग ही होय छै;
मतर दरकार पड़े मुठ्ठी बान्है रो,
मुश्किल सँ मोकबला ठानै रो,
ते सब एक ठीं होय जाय जौरो,
काम छोड़ी के आपनो हिस्सा रो,
नै कोय कंगुरिया,न कोय टिप्पा मारै वाला,
नै टिक्का लगाय वाला,नै गोस्सा करै वाला।
ते ज़रूरत मोताबिक ज़रूरत बुझो,
नै ते कौकड़ा रो बच्चा बुझथैं होभो,
कि केना के फोकी के खाय जाय छै!
सब टा अरमान राखले रही जाय छै।
समय मोताबिक राखो प्यार-दुलार,
समय रो मोताबिक आरो कार-बार,
रौदी सँ कारो होय रो चिंता करभो,
ते केना के उठैथौं जिनगी रो भार?
केना पालथौं धिया-पुता,परिवार?
केना के करथौं है भवसागर पार?
समय रो पुकार जौं अनसुनी करभो,
धिया-पुता रो दुखो पर हकरी मरभो,
कोय नै होथौं केकरो साथ,
बेकार होय जैथौं सब हाथ,
बुड़ाय ले आरो कनबाय ले।
                     अरुण कुमार पासवान
28/4/2020
 
 

Angika Kavita | अंगिका कविता
हाथ | Haath
अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan

 







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