हरा-पियर रंग फाग...... | अंगिका कविता | प्रीतम विश्वकर्मा 'कवियाठ' Hara-Pier Rang Phaag.. | Angika Kavita | Pritam Vishwakarma 'Kaviyath'
सांझे-सांझ दुपहरिया बरसै
पिया बिनु सब आग
कहाँ बसंती लहकै-बहकै
हरा-पियर रंग फ़ाग
कोयल के मिट्ठो बोली
तित्तो कैहने लागै छै
भनर-भनर भंवरा गाबै
मन हमरो भरमाबै छै
क्यारी-क्यारी फूल रंगैलो
मुरझैलो रंग लागै बाग।
गुटुर-गुटुर कबूतरा गुटरै
भोरे-भोर जगाबै बगरो
मुंडरी-मुंडरी बांचै कौआ
नाचै ऐंगना बाड़ी सगरो
मुँह चीढ़ाबै फुदकी मैना
कैहने लागै छो उदास।
-----प्रीतम
5/3/2020
हरा-पियर रंग फाग...... | अंगिका कविता | प्रीतम विश्वकर्मा 'कवियाठ' Hara-Pier Rang Phaag.. | Angika Kavita | Pritam Vishwakarma 'Kaviyath'

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