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Sunday, March 22, 2020

हाथ धोते रहो | Haath Dhotein Rahow | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Angika Kavita | Arun Kumar Paswan

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
हाथ धोते रहो | Haath Dhotein Rahow
अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan


हाथ धोते रहो,
कैन्हें कि हाथ धोय के,
पीछू पड़लो छौं कोरोना।
आरो ध्यान राखिहो है,
कि है विपत्ति ज़रा दोसरो तरह के छै,
हेकरा में,खाली धीरज के ज़रूरत छै;
मिली-बैठी,विचार करी,लोर पोछी के,
ढाढ़स बन्हाय रो राखिहो आदत नै ,
लक्षण देखो,अलग रहो,
आरो दूरो सँ दुआ करो;
बताबो,सरकारी विभागो के,
कि जाँच हुए,सही पता लागे।
आरो बच्चा,बूढ़ो,कमज़ोर लोग,
घरे में रहे,आराम करे,
सब ने सफैयत सँ हाथ धोय-धोय के,
आपनो-आपनो काम करे।
आरो है नै बुझिहो कि
सियानो लोग बौखते रहे;
एकदम जरूरी हुए तभी काँहूँ जा,
तीन तरकारी के चहट ज़रूरी नै,
दाल-रोटी,चोखा-भात खा,
मतर बहाना खोजी के,बाजार मत जा।
सुक्खा खाँसी,तेज बोखार,
साँस लै में दिक्कत,नाको सँ धार,
हुए पारे कोरोना के लच्छन;
मतर होबे करतै,हौ बात नै,
सरकारी अस्पतालो के बताबो,
जल्दी सँ जाँच कराबो,
रिपोट ऐतै,वहीं बतैतै,
वहे बेमारी छेकै कि नै।
लच्छन देखथैं रहो अलग,
खबर पहुँचाबो डाक्टर लग।
        अरुण कुमार पासवान
        ग्रेनो,21 मार्च,2020
 

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