Angika Kavita | अंगिका कविता
सिम्मर के फूल | Simmar Ke Phool
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
बच्चा-बुतरू के भेजिहो स्कूल,
नै ते बनी जैथौं सिम्मर के फूल।
पेट काटै ले पड़े ते कोय बात नै,
ढेर खटै ले लागे ते कोय बात नै,
बच्चा नै पढ़े ते जिनगी बेरथ छै,
भूलियो के नै करिहो ऐन्हो भूल।
बच्चा-बुतरू के भेजिहो स्कूल,
नै ते बनी जैथौं सिम्मर के फूल।
लोग एतना जादा बढ़ी रेल्हो छै,
कि जमीन-जग्घो घटी रेल्हो छै,
पढ़ला-लिखला पर बहुत रस्ता,
बिना पढ़लें चाटै ले लागतै धूल।
बच्चा-बुतरू के भेजिहो स्कूल,
नै ते बनी जैथौं सिम्मर के फूल।
हुनर होतै ते करी लेतै रोज़गार,
बुझतै-समझतै दोकान-बाज़ार,
दू पैसा कमाय के चैनो सँ जीतै,
नै ते बैल रंग रैतै ओढ़ी के झूल।
बच्चा-बुतरू के भेजिहो स्कूल,
नै ते बनी जैथौं सिम्मर के फूल।
गुल्ली-डंडा आरो तास खेलथौं,
बिगड़ैल सिनी सङ्गे दंड पेलथौं,
उल्टा-सीधा रंग लत लगाय के,
मान-मर्यादा सब मेटैथौं समूल।
बच्चा-बुतरू के भेजिहो स्कूल,
नै ते बनी जैथौं सिम्मर के फूल।
अरुण कुमार पासवान
ग्रेनो,15 फरबरी,2020
Angika Kavita | अंगिका कविता
सिम्मर के फूल | Simmar Ke Phool
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
No comments:
Post a Comment