Angika Kavita | अंगिका कविता
समुचित-सम्मान | Samuchit Samman
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
मन खुश होय भेलो जोश देखी के,
आरो सुनी-सुनी ई सब केरो ऐलान,
है गर्जन आबे तब-तालुक नै रुकतै,
जबतक नै मिलतै समुचित-सम्मान।
संकल्प सँ बढ़लो शक्ति नै होय छै,
बिना श्रद्धा कोनो भक्ति नै होय छै,
एकजुट भै लेलो होलो छै आह्वान,
मानव-श्रृंखला छेकै वहे अभियान,
है अभियान जारी रैतै साँझ-बिहान,
जबतक नै मिलतै समुचित-सम्मान।
बात शुरू होय के दूर तक जाय छै,
दमदार बात ने फेरु लोग जुटाय छै,
जुटिये ते रैल्हो छै अंगिका-समाज,
असर करी रैल्हो छै बुलंद आवाज़,
होते रैतै एन्हैं के समाजो के जुटान,
जबतक नै मिलतै समुचित-सम्मान।
अंगिका ते अंगवासी के माय छेकै,
है संघर्ष सारा समाज के राय छेकै,
गर्व होतै अंगिका के ई रंग श्रद्धा सँ,
जबे होतै सामुहिक-गर्जन श्रद्धा सँ,
गूँजते रैतै नारा सँ ज़मीन-असमान,
जबतक नै मिलतै समुचित-सम्मान।
अरुण कुमार पासवान
ग्रेनो,18 फरबरी,2020
Angika Kavita | अंगिका कविता
समुचित-सम्मान | Samuchit Samman
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
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