Angika Kavita | अंगिका कविता
बोलै के फेर | Bolai Ke Pher
अरूण कुमार पासवान | Arun Kumar Paswan
एक्के बात,सिरिफ बोलै के फेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
सोचिए-समझी के रस्ता चलिहो,
नै ते पीछू के तरत्थी तों मलिहो,
छटपटैते रैय्हो जबे लागथौं फेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
रस्ता में पैल्हें परीक्षा दीये होथौं,
यै बास्तँ सही शिक्षा लिए होथौं,
समझी-बूझी लगाय ले लागे टेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
मन-चित्त सँ जौनें तैयारी करतै,
सही लिखी के जौनें पन्ना भरतै,
वहीं परीक्षा में लानतै नम्मर ढेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
पुर्जा भरोसा पर परीक्षा नै दिहो,
ऐन्हों रंग के तों आफत नै लिहो,
पास की करभे लागी जैथौं फेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
साल भर वाला रास्ता पकड़िहो,
हबर-दबर वाला काम नै करिहो,
दुरुस्त ऐय्हो कत्तो होय जाय देर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
पहाड़ चढ़ै बास्तँ ते जोश ज़रूरी,
मतर कि साथे-साथ होश ज़रूरी,
बड़ो-बूढ़ो सँ आशीर्वाद माँगो ढेर,
तीन पसेरी कहो कि पनरह सेर।
अरुण कुमार पासवान
ग्रेनो,14 फरबरी,2020
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