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Friday, December 20, 2019

सिटसिटिया जाड़ | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Sitsitia Jaad | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

 


सिटसिटिया जाड़ | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Sitsitia Jaad | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan


आबी गेलो छै सिटसिटिया जाड़,

बच्चा-बूढ़ा के ज़रा राखिहो सम्हार।


पानी देखो कैन्हो बरफ होय रैल्हो छै!

मुश्किल सुरुज के दरस होय गेलो छै।


लागै छै हिमालय लगीच आबी गेलो छै,

कुइयाँ,पोखर मानसरोवर बनी गेलो छै।


दिने-दुपहरे होय जाय छै अन्हार,

बच्चा-बूढ़ा के जरा राखिहो सम्हार।


कॉलेजिया सियानो सिनी के बताय दिहो,

जाड़ बड़ा राड़ होय छै से समझाय दिहो ।


सूटर,टोपी,जुत्ता-मौजा भी पिन्हबाय दिहो,

समय मुताबिक फैशन करे सिखाय दिहो।


तीन महीना बाद ते ऐबे करते बहार,

बच्चा-बूढ़ा के जरा राखिहो सम्हार।


आरो आबे सबसँ बड़ो बात कैभौं,

जे भुलाबे सकै छो हौ याद दिलैभौं ।


माल-मवेशी के चिंता करै ले कैभौं,

निमुहाँ-धन पर दया राखै ले कैभौं;


सब जीव-जन्तु के दै ले लागे प्यार,

जे छेकै समझदार लोगो के सहचार।


आबी गेलो छै सिटसिटिया जाड़,

बच्चा-बूढ़ा के जरा राखिहो सम्हार।


अरुण कुमार पासवान

ग्रेनो,16 दिसम्बर,2019

सिटसिटिया जाड़ | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Sitsitia Jaad | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

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