बड़का परब
अंगिका कविता | अरुण कुमार पासवान
छठ माय के पूजा,बड़का परब
सुरुज बाबा के सब न दीहो अरग।
बड़का परब में सब एक समान,
नै कोय निर्धन नै कोय धनवान।
नहाय-खाय दिन कद्दू-भात,
आरो रसिया खरना के रात।
एक रंग खान-पान एक्के पकवान,
सब सूपो में प्रसाद एक्के समान।
सुथनी,कन्ना,केतारी,केला,टाभा,
चौरो के कसारो,नारियल,ठेकुआ।
डुबते सुरुज के पैल्हौ अरग,
उगते के दै के निस्तार परब।
सब ने सब रो खैहो परसाद,
है परबो में नै कोय विवाद।
छठ माता पूजो,पूजो सुरुज भगवान,
दोनो शक्ति मिली तबे करथों कल्याण।
आबी गेलो छौं पवित्र छठ परब,
श्रद्धा,विश्वास सँ चलो दीहो अरग।
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