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Wednesday, November 20, 2019

फैसला | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Faisala | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

 


फैसला | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Faisala | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan


हाँ,ते फैसला होय गेलै।

बहुत दिनो सँ असरा देखी रैल्हो छेलै
पूरा देश के लोगें ने,आय ऐतै,काल ऐतै।

शर्त पैल्हें करले छेलै सब दावेदारें ने
कि मंजूर होतै,जे भी फैसला करी देतै
सब सँ बड़ो न्यायालय,सुप्रीम कोर्ट ने।

यही बास्तँ,आबे केकरो मुँहो सँ
कोय किंतु-परन्तु नै निकलना चाहियो।

वैसें भी सब के पता छै कि आमलोगो के
कोय खास मतलब नै होय छै,है सिनी सँ,
कुछ खासे लोग होय छै,तिल्ली लगाय वाला।

मंदिर-मस्जिद ते पूजा-इबादत के घर छेकै,
ईश्वर-अल्ला के पूजा-इबादत,शुद्ध मन सँ।

आरो कैल्हे छै "मन चंगा ते कठौती में गंगा"
फेरु मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ाय कैन्हो?

आबो,हाथ मिलाबो,दिल मिलाबो,
प्रेम बढ़ाबो,मतभेद मेटाबो,भुलाबो,
भेद-भाव हीन वाला हिंदुस्तान बनाबो।

अरुण कुमार पासवान
सिलीगुड़ी,09.11.'19

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