कोय बात नैं | अंगिका कविता | त्रिलोकी नाथ दिवाकर
Koy Baat Nai | AngikaPoetry | Triloki Nath Diwakar
काटै छै बीरनी
बिख उतारै लहरनी
एकें सताय छै
दोसरें गथाय छै
कोय बात नैं ।
पुलिसों के डंड़ा
वकीलों के फंड़ा
एकें डेंगाय छै
दोसरें सिझाय छै
कोय बात नैं ।
लकड़ी के दीमक
नेता के नीयत
एकें सड़ाय छै
दोसरें लड़ाय छै
कोय बात नैं ।
सरकारो के घोषणा
अधिकारी के चोसना
एकें गिनाय छै
दोसरें बिलाय छै
कोय बात नैं ।
गरीबों के झोपड़ी
अमीरो के खोपड़ी
एकें बचाय छै
दोसरें नचाय छै
कोय बात नैं ।
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