तिलकामाँझी
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तिलकामाँझी
सतमा सर्ग ()
— हीरा प्रसाद हरेंद्र —
हिन्नें तिलका मांझी आबै,
हसडीहा जंगल सुनसान।
अंग्रेजऽ के पहुंच वहां नैं,
पर तिलका के पूरा मान।। 1।।
हंसडीहा के बगल पहाड़ी,
एगो छेलै सुन्दर गांव।
बाबा तिलका मांझी पहुंचै,
साथी संगें वोही ठांव।। 2।।
शादी केरऽ जश्न वहां पर,
जुटै पहाड़ी जन समुदाय।
≈ जश्नोॅ म॑ हाथ बंटाबेॅ,
तिलका क॑ आमंत्रण आय।। 3।।
वहां पता तिलका क॑ चललै,
पग-पग पर जासूस लगाय।
अंग्रेजें चाही रहलऽ छै,
तिलका क॑ लौं जाल फसाय।। 4।।
नजरबन्द जे रानी होलै,
जानी गेलै वोही ठांम।
क्लीवलैण्ड के चाह॑ लगलै,
करना जल्दी काम तमाम।। 5।।
वही जश्न म॑ शामिल छेलै,
एगो लड़की बड़ी उदार।
देखै छेलै बड़ी ध्यान सें,
तिलका मांझी के व्यवहार।। 6।।
बचपन सें ही सुननें छेलै,
तिलका मांझी केरऽ नाम।
जबड़ा सें तिलका बनलै जे,
धरमू कहनें रहे तमाम।। 7।।
लड़की छेली मंदारऽ के,
पिता सूरजा छेलै साथ।
चिन्ता मन म॑ रहै हमेशा,
केकरा हाथैं दिये हाथ।। 8।।
पहाड़िया बनवारी चाहै,
अपनों अर्हंगिनी बनाय।
पर ≈ लड़की प्रस्तावोॅ क॑,
देनें छेलै खुद ठुकराय।। 9।।
लड़की केरऽ नाम, बताबै सब्भैं नीना।
बड़ी मनोहर रूप, रहै जे बड़ी हसीना।।
बापोॅ के अनमोल, रतन इकलौती बेटी।
रखनें छेलै पास, सदा सद्भाव समेटी।। 10।।
मन म॑ इक अरमान, छिपैनें घूमै छेलै।
आज अचानक ध्यान, वही मुखड़ा पर गेलै
तिलका मन के देव, करे मन ही मन पूजा।
बांकी सब बेकार, सुहाबै नैं मन दूजा।। 11।।
जश्नों केरऽ रात, लखै तिलका के जेरऽ।
सुनै सूरजा बात, खुलै मुंह नीना केरऽ।।
‘मन के राजकुमार, यह॑ मन नीना भावै।
बचपन सें अरमान, यह॑ जीवन म॑ आबै।। 12।।
तन-मन अर्पण प्राण, हमेशा जकरा उपर।
बढ़लऽ एक्को वीर, कहां हमरा लेॅ भू पर।।
तिलका छेकै सांस, रक्त भी धमनी केरऽ।
आंखी म॑ तूफान, जरा हमरा दिश हेरऽ।। 13 ।।
जों संभव छै आय, यहां शुभ ब्याह रचाबोॅ।
जश्नों म॑ इक जश्न, अभी तत्काल मिलाबोॅ।।
छहुं अगर एतराज, कुंवारी जीवन जीबै।
तिलका लेॅ ई जान, जहर के प्याला पीबै’।। 14।।
रहै सूरजा पहाड़िया भी,
हस्ती वाला जानी लेॅ।
गुरू धरमा सें छेलै नाता,
दूर-दूर के मानी लेॅ।। 15।।
तिलका क॑ समझाबेॅ लगलै,
ठाम्हैं तों घबड़ाबोॅ नैं।
अंग्रेजऽ के अधिकारी सें,
गोस्सा म॑ फड़ियाबोॅ नैं।। 16।।
तिलका के संताल दोस्त भी,
कहलक बात यह॑ मानोॅ।
अंग्रेजऽ के अखनी निश्चित,
बढ़लऽ छै ताकत जानोॅ।। 17।।
मिली-जुली क॑ टक्कर देबै,
अंग्रेजो उत्पाती सें।
यह॑ योजना सब्भै केरऽ,
बनी रहल छै राती सें।। 18।।
बात रखलकै तिलका तखनी,
गोस्सा भी कुछ नरमैलै।
तबेॅ सूरजा सोची समझी,
तिलका के आगू ऐलै।। 19।।
प्रस्ताव सुनाबै नीना के,
‘तोरा पीछू पागल छै।
चुपके-चुपके बहुत दिनों सें,
स्नेह ॉदय म॑ जागल छै।। 20।।
हमरऽ एगो यह॑ प्रार्थना,
नीना क॑ तों अपनाबोॅ।
नीना के मायूस मनोॅ पर,
प्रेम सुधा तों बरसाबोॅ’।। 21।।
तिलका के साथी संगी भी,
अपनों दाव बनाबै छै।
तिलका नीना केरऽ आगू,
ढेरी प्रश्न सुनाबै छै।। 22।।
‘हम्म॑ तेॅ बलिदानी बकरा,
हमरऽ जग म॑ आशा नैं।
झूठ-मूठ के तोरा देना,
समुचित यहां दिलासा नैं।। 23।।
हमरा सें जे ब्याह रचैतै,
विधवा ही कहलाबै लेॅ।
सही इरादा अभी बनाबोॅ,
जीवन भर मुस्काबै लेॅ।।’ 24।।
नीना बोलै ‘देश प्रेम के,
ज्वाला जैजां भड़कै छै।
अंग्रेजऽ सें टक्कर लै लेॅ,
भुजा जहां पर फड़के छै।। 25।।
जुल्मी-जुल्म मिटाबै खातिर,
कवज ॉदय के कड़कै छै।
अन्यायी के आकाशोॅ म॑,
बिजली नांकी तड़कै छै।। 26।।
अचल सुहाग वहीं पर हमरऽ,
हमरऽ खाली आन यह॑।
तिलका हमरऽ जीवन साथी,
एक्के छै अरमान यह॑।। 27।।
नाश्वर तन पर आस-भरोसा,
हमरऽ नैं पहिचान कहोॅ।
मातृभूमि लेॅ जान गमाना,
हमरऽ तेॅ अरमान कहोॅ।। 28।।
बाबू जी शादी के चर्चा,
पहिनें कहीं चलैनें छै।
पर नीना तेॅ तिलका खातिर,
अपनों मांग सजैनें छै।। 29।।
शादी भोग-विलासोॅ खातिर,
हमरा कहां रचाना छै।
प्राण्ेश्वर के नामोॅ साथें,
सदा अमरता पाना छै।।’’ 30।।
नीना के बातोॅ के आगू,
तिलका शीश झुकाबै छै।
अपनों प्रण के बात वहीं पर,
सब्भै क॑ बतलाबै छै।। 31।।
‘क्लीवलैण्ड के हत्या बादें,
लौटी क॑ ऐबै जखनी।
नीना अहिनों पत्नी के
पति, निश्चय कहलैबै तखनी।। 32।।
तिलका मांझी मंडप छोड़ी,
क्लीवलैण्ड क॑ निबटाबेॅ।
ढिब्बो, गरभू साथें चाहै,
अखनी जैबै फड़ियाबेॅ।। 33।।
सब्भै के कहला पर चललै,
बढिया बात बिचारै लेॅ।
मंदार जहां पर मधुसूदन,
भक्तगणों क॑ तारै लेॅ।। 34।।
सत्रह सौ तेरासी केरऽ,
बचलै कुच्छू पखवारा।
जाड़ा केरऽ समय सुहावन,
धूप लगै प्यारा-प्यारा।। 35।।
एक दिनां मंदार बिताबै,
फेनूं रस्ता पकड़ै छै।
चललै वहां, जहां पर हरदम,
क्लीवलैण्ड तेॅ अकड़ै छै।। 36।।
एक सूचना मिललै तखनी,
अनहोनी घटना छेलै।
चिन्ता सागर म॑ डूबी क॑,
स्वर्गलोक रानी गेलै।। 37।।
ई घटना तिलका गोड़ोॅ म॑,
दै छै तखनी पंख लगाय।
भागलपुर के राह पकड़नें,
लागै जेना उड़लऽ जाय।। 38।।
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Angika Poetry : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी
तिलकामाँझी | सतमा सर्ग |अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-7 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra
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