तिलकामाँझी
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तिलकामाँझी
अठमा सर्ग (-)
— हीरा प्रसाद हरेंद्र —
दक्षिण सें उत्तर दिश चललै,
लगातार नैं कहीं विराम।
दोसरे दिन पहुंचलै भोरे,
मीशन क॑ दै लेॅ अंजाम।। 1।।
भेटै कुच्छू लोग चिन्हलका,
पहिनें तेॅ गेलै घबड़ाय।
नाई सें बोली क॑ लेलक,
संतालऽ के भेष बनाय।। 2।।
खोजेॅ लगलै कहीं सुरक्षित
आश्रय अपनों, बन संताल।
क्लीवलैण्ड के टोह लगाबै,
फेकै जन्नें-तन्नें जाल।। 3।।
बाबू जी क॑ बेरहमी सें,
जैजां फांसी पर लटकाय।
वैझैं चाहै क्लीवलैण्ड क॑,
तीर-धनुष सें दौ बिथराय।। 4।।
क्लीवलैण्ड क॑ वै जग्घा पर,
कखनूं भूल्हौं सें नैं पाय।
तिलका मांझी केरऽ तखनी,
गेलै मनसूबा बदलाय।। 5।।
गंगा तट पर योगी नांकी,
लाचारी म॑ रात बिताय।
क्लीवलैण्ड के घूमै वाला,
लेलक जग्घोॅ पता लगाय।। 6।।
≈ जग्घा पर तीर-धनुष क॑,
बरगद गाछी रखै छिपाय।
आगू बढ़तें राहगीर सें,
गेलै धोखा सें टकराय।। 7।।
≈ तेॅ छेलै ठाकुर बाबा,
बचपन म॑ जे खेलै साथ।
जबड़ा-जबड़ा कहनें-कहनें,
पकड़ी लेलक आबी हाथ।। 8।।
ठाकुर बाबा सें नैं छिपलै,
लाखो चाहै दौं भरमाय।
जबड़ा के तेॅ जन्म सबौरे,
ठाकुर बाबा दै बतलाय।। 9।।
ठाकुर बाबा कह॑ लागलै,
हमरा सें नैं घबड़ाबें।
हम्म॑ तोरा राह बतैबौ,
हमरा सें नैं कतराबें।। 10।।
हम्म॑ तोरऽ सब्भे खिस्सा,
जानों एकोॅकोरी सें।
हमरा सें नैं भागेॅ सकबें,
कखनूं चोरी-चोरी सें।। 11।।
सबौर बामन टोला वासी,
बाबा ठाकुर कहलाबै।
तिलका क॑ अपनों विद्यालय म॑,
लानी क॑ ठहराबै।। 12।।
खैलक कसम जने≈ छूबी,
हम्हूं तोरऽ अनुयायी।
हमरो छै अरमान मिटाबां,
धरती पर के अन्यायी।। 13।।
तोरऽ बाल न बांका होतै,
यैठां कखनूं जानी लेॅ।
करना की छै यैझें बैठी,
सोची-समझी ठानी लेॅ।। 14।।
पहाड़िया के बाबा ठाकुर,
जेना सब्भैं पूजै छै।
बामन टोला वाला ठाकुर,
वौन्हें तिलका बूझै छै।। 15।।
तब निश्छल भावोॅ सें तिलका,
ठाकुर लेगां आबै छै।
क्लीवलैण्ड क॑ मारै वाला,
निर्णय तब बतलाबै छै।। 16।।
बापोॅ के बदला लेना छै,
क्लीवलैण्ड सें जानी लेॅ।
ई ठो हमरऽ कठिन प्रतिज्ञा,
पूरा करबै मानी लेॅ।। 17।।
क्लीवलैण्ड के विश्वासी छै,
अखनी सब्भे संताली।
वोही लेली भेष धरलियै,
छिपलऽ रहना छै खाली।। 18।।
रहै दशहरा केरऽ छुट्टी,
विद्यालय भी छेलै बन्द।
विद्यालय म॑ ककरऽ आबै,
पर लगलऽ छेलै प्रतिबंध।। 19।।
ठाकुर बाबा बड़ी प्रेम सें,
खाना लानी वहीं खिलाय।
तिलका लेलक क्लीवलैण्ड के,
सारा हुलिया पता लगाय।। 20।।
सतरह सौ तेरासी ईस्वी,
नवम्बर तारीख उनतीस।
तिलका ठाकुर बाबा आगू,
झूक्की क॑ मांगै आशीष।। 21।।
पहिनें बरगद गाछी पर सें,
आबी लै अपनां औजार।
क्लीवलैण्ड क॑ नाश करै मैॅ,
जकरऽ छै पूरे दरकार।। 22।।
बगल एक झाड़ी म॑ देलक,
औजारऽ क॑ वहीं छिपाय।
क्लीवलैण्ड वोही राहोॅ सें,
रोजे-रोजे घूम॑ जाय।। 23।।
विद्यालय म॑ फेनूं आबी,
बाब संग करै जलपान।
बाबा देखै तिलका केरऽ,
आंखी म॑ उठलऽ तूफान।। 24।।
धुन के मतवाला तिलका के,
आंखी अखनी नींद हराम।
सोचै मन-मन केना करबै,
भोरे होथैं काम तमाम।। 25।।
ठाकुर बाबा सें जानलकै,
खिस्सा जीवन के अनमोल।
धीरें-धीरें खोलेॅ लगलै,
अपनों जीवन केरऽ पोल।। 26।।
ठाकुर बोलै भाभी तोरऽ,
होतौ भैया आस लगाय।
भोजन शान्हैं केरऽ बनलऽ,
≈ जैतै बिल्कुल ठंढाय।। 27।।
खाना लानी क॑ रातो भर,
सुनबै खिस्सा मोंन लगाय।
बाबा ठाकुर खाना लानेॅ,
गेलै तब जल्दी सिधिआय।। 28।।
खाना लानी खैतें-पीतें,
रात बीतलै आधोॅ भाय।
खैतें-खैंतें जीवन केरऽ,
आधोॅ खिस्सा कहै बुझाय।। 29।।
नीना केरऽ खिस्सा कहतें,
आंखी पूरा लोर बहाय।
बोलै तिलका अहिनों नारी,
धरती पर नैं अभी लखाय।। 30।।
बलिदानी बकरा सें जौनें,
शादी केरऽ मोंन बनाय।
बापोॅ साथें सब्भै केरऽ,
देलक माथोॅ क॑ चकराय।। 31।।
जकरऽ नैं अरमान कखनियों,
पति के साथें भोग-विलास।
खाली चाही पति प्रेमोॅ के,
निर्मल, नीला, स्वच्छ आकाश।। 32।।
Ωणी हमेशा लेली हमरा,
देल्हो बाबा तोंय बनाय।
नीना लेली अगर बचलिहौं,
जल्दी मिलभौं दोनों आय।। 33।।
जीवन भर नैं कभी भुलैभों,
रखौं पहाड़ी बाबा साक्ष।
अखनी हमरा चाही बाबा,
थोड़ोॅ सा चन्दन, रूद्राक्ष।। 34।।
दोन्हूं के बतकहीं सुनैलेॅ,
तारा भी जागै आकाश।
खिड़की देॅ क॑ आबै छेलै,
शरद सुहावन चन्द्र प्रकाश।। 35।।
उगी भुरूकवा बतलाबै छै,
की सुतलऽ छें होलै भोर।
चमगुदड़ी क॑ नींद कहां छै,
भागै उल्लू करनें शोर।। 36।।
सतभैबा तनि छेलै नीचें,
तीन डरिया पश्चिम दिश जाय।
कचबचिया तेॅ कच बच करनें,
आंखी केरऽ नींद उड़ाय।। 37।।
आरू चिड़िया चुनमुन-चुनमुन
डाली बैठी गाबै गीत।
ओहारी म॑ टंगलऽ तोता,
गीतोॅ म॑ दै छै संगीत।। 38।।
लम्बा डग भरनें तब निकलै,
तिलका बरगद के नजदीक।
झाड़ी सें तब बाण निकालै,
करै धनुष के डोरी ठीक।। 39।।
पूरब म॑ लाली कुछ झलकै,
चिड़िया के आबै आवाज।
क्लीवलैण्ड क॑ ताकै तिलका,
जैसें कोनों पक्षी बाज।। 40।।
देखै दूर परछांहीं ऐतें,
तिलका करै सही पहिचान।
क्लीवलैण्ड के पाछू अनुचर,
गज पचीस दूरी अनुमान।। 41।।
धरमा चाचा केरऽ देलऽ,
छांटै रहै तीर विष युक्त।
क्लीवलैण्ड तेॅ आबी गेलै,
जग्घोॅ जे छेलै उपयुक्त।। 42।।
तिलका झाड़ी फाड़ी निकलै,
ऐलै निकट झपट्टा मार।
क्लीवलैण्ड के छाती देलक,
विषाक्त तीनों तीर उतार।। 43।।
अनुचर छेलै दूरें काफी,
घटना के नैं जानै हाल।
क्लीवलैण्ड क॑ पीटी-पीटी,
धनुषोॅ सें करलक बेहाल।। 44।।
आरू थूकी-थूकी देलक,
थूकोॅ सें पूरा नहलाय।
धनुष वाण छोड़ी वोही ठां,
र∂फू चक्कर होलै भाय।। 45।।
एक कोस के दूरी गेलै,
बैठै झाड़ी वहीं नुकाय।
धोती गमछा साथें छेलै,
माथोॅ लेनें रहै मुड़ाय।। 46।।
बाबा जी के भेष बनाबै,
चन्दन टीका भाल लगाय।
राम नाम रूद्राक्ष पहननें,
गाबै मुंह सें जन्नें जाय।। 47।।
क्लीवलैण्ड धरती पर गिरलै,
तीस नवम्बर होलै अन्त।
तिलका मांझी बाबा छेलै,
बनलै आरू पूरा सन्त।। 48।।
जंगल छोड़ी गामें-गामें,
भीख मांगनें जाय।
मंदार पहुंचलै ठाम्हैं म॑,
छलिया रूप बनाय।। 49।।
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Angika Poetry : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी
तिलकामाँझी | अठमा सर्ग |अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-8 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra
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