तिलकामाँझी
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तिलकामाँझी
छठऽ सर्ग ()
— हीरा प्रसाद हरेंद्र —
आदिवासी क्षेत्र घूमी क॑,
संगठन बनाबै छेलै।
अंग्रेजऽ के गोरखधन्धा,
हर वक्त सुनाबै छेलै।। 1।।
ओजस्वी भाषण सें बदलै,
नवयुवकोॅ सबके रस्ता।
तैयार करलकै क्षेत्रऽ म॑,
बड़का बलिदानी दस्ता।। 2।।
संयोग उड़ीसा सें जखनी,
गुमला दिश आबै छेलै।
एक पहाड़ी नदी किनारें,
सब्भे ठो बैठी गेलै।। 3।।
क्षेत्र पहाड़ी बड़ा मनोरम,
प्रकृति मोंन लोभाबै छै।
गाछी के पŸा सें छनलऽ,
धूप सूर्य के आबै छै।। 4।।
चमचम चमकै चांदी नांकी,
धूप वहीं पर रेतोॅ म॑।
परती पड़लऽ धरती छेलै,
फसल जरा नैं खेतोॅ म॑।। 5।।
बेर रहै गोधूली तखनी,
गरदा उड़लऽ आबै छै।
घण्टी बाजै गैया गल्लॉ,
चरबाहा भी गाबै छै।। 6।।
सूर्यदेव भी धीरें-धीरें,
अपनों तेज गमाबै छै।
रात्रि म॑ विश्राम वोही ठां,
सबके मोंन सुहाबै छै।। 7।।
कुच्छू तारा आकाशोॅ म॑,
जन्नें-तन्नें झलकै छै।
तब संध्या क॑ दाबै लेली,
अंधेरा भी ललकै छै।। 8।।
गरदा सें आकाशोॅ भरलऽ,
चांदोॅ धुंधला लागै छै।
ठाम्हैं ≈पर इन्द्रदेव भी,
दलबल साथें जागै छै।। 9।।
वर्षा Ωतु के छाया झलकै,
वोही क्षण आकाशोॅ म॑।
बादल गरजै, बिजली तड़कै,
घबड़ाबै वनवासोॅ म॑।। 10।।
मूसलधार बरसलै पानी,
झींगुर झनक॑ लागै छै।
बाढ़ोॅ के पानी सें ठाम्हैं,
सुतलऽ नद्दी जागै छै।। 11।।
मेढ़क भी नैं रात बुझलकै,
टर-टर-टर टर्राबै छै।
ठनका जखनी ठनकै जोरें,
दिशा-दिशा थर्राबै छै।। 12।।
थम्हलै पानी बलकस्सी पर,
गमछा कोय बिछाबै छै।
नैं घबड़ाबै परदेशोॅ म॑,
यह॑ मुसीबत आबै छै।। 13।।
आधा-आधी रात बीतलै,
नींदें सबक॑ दाबै छै।
तखनी एगो सांप अचानक,
दूर कहीं सें आबै छै।। 14।।
≈ विषधर के लीला देखोॅ,
धरमू क॑ बेजान करै।
तिलका के आंखी के आगू,
अंधेरा भगवान करै।। 15।।
भोक्कार करै तिलका तखनी,
पर सब्भे बेकारे छै।
सही लिखलका छठी रात के,
दुख भोगै संसारे छै।। 16।।
ढेरी जान बचाबै जौनें,
सर्प दंश सें आबी क॑।
झाड़ै-फूकै, मंत्र उचारै,
सब्भै आगू गाबी क॑।। 17।।
ओकरऽ नैं उपाय कहीं छै,
कतनों लोर बहाबोॅ तों।
असरदार नैं होथौं अखनी,
कोनों गीत सुनाबोॅ तों।। 18।।
उस्ताद रहै धरमू पूरा,
सांप कटलका लेॅ जानोॅ।
करनें रहै महारत हासिल,
जाय उड़ीसा सब मानोॅ।। 19।।
एकरा बेरी काम जरा नैं,
तंत्र-मंत्र सब व्यर्थ कहोॅ।
होनी खातिर दरवाजा सब,
खुल्ले रहथौं जहां रहोॅ।। 20।।
िÿया-कर्म वोही ठां होलै,
आगू गुमला आबै छै।
गुरूभाई गरभू हेम्ब्रम क॑,
गुरू के बात बताबै छै।। 21।।
बिरजू, गरभू के बापें तब,
सब सेवा-सत्कार करै।
समझाबै सब देश भक्त के,
ईश्वर बेड़ा पार करै।। 22।।
बिरजू अच्छा हस्ती वाला,
गुमला म॑ संताल रहै।
बिरजू केरऽ देख-रेख म॑,
संताली खुशहाल रहै।। 23।।
मेला छेलै सिमडेगा के,
वहीं जुटाबै लोगोॅ क॑।
तिलका क॑ आबै के कारण,
कही बताबै लोगोॅ क॑।। 24।।
गुरू धरमा जब गुजरी गेलै,
तिलका आगू आबै छै।
आगू देखोॅ भाषण द्वारा,
की-की सब समझाबै छै।। 25।।
‘‘आम सभा के साथी आरू,
सिमडेगा मेलाके लोग।
तोरऽ-हमरऽ मिलन यहां पर,
छेकै मात्र एक संयोग।। 26।।
भाषणा के अंदाज जरा नैं,
देखी क॑ तोरऽ जामात।
अनायास आबी रहलऽ छै,
हमरा होठोॅ पर सब बात।। 27।।
सुनोॅ-सुनोॅ संताल भाइयो!
सुनोॅ आदिवासी समुदाय।
अंग्रेजें हमरा सब ≈पर,
कहिनों करनें छै अन्याय।। 28।।
अहा ! श्याम तोरऽ प्रिय नेता,
देनें होथौं बात बुझाय।
ढिब्बन संतालऽ के अगुआ,
दस्ता के नायक कहलाय।। 29।।
काण्ड सबौरो सदा गवाही,
क्लीवलैण्ड के अत्याचार।
पहाड़िया सें जौनें ठानै,
छै हरदम-हरदम तकरार।। 30।।
शिब्बू हमरऽ बाबू जी क॑,
भूखोॅ-प्यासोॅ सें तड़पाय।
भागलपुर के चौराहा पर,
जौनें फांसी पर लटकाय।। 31।।
अंग्रेजें अपना चालऽ सें,
ज≈राह क॑ जब भटकाय।
ज≈राह हमरा बीचोॅ म॑,
देनें छेलै धूम मचाय।। 32।।
ज≈राह छै अखनी साथें,
क्लीवलैण्ड क॑ भारी कोप।
पहाड़िया पर आबी गेलै,
डाकू के पूरा आरोप।। 33।।
हम्में तोरा बीचें अखनी,
ज≈राह के वहां भिड़न्त।
हम्हूं अंग्रेजऽ सें लड़बै,
जानी लेॅ जीवन पर्यन्त।। 34।।
सात समंदर पार करी क॑,
केनां क॑ ऐलै अंग्रेज।
हमरा बीचें दिखलाबै छै,
जौनें अखनी पूरा तेज।। 35।।
हों, हों ≈ मिरजाफर छेलै,
जे निकली गेलै गद्दार।
क्लाइव के बनलै कठपुतली,
सिराजु क॑ दै धक्का मार।। 36।।
≈ अंग्रेजें चाहै अखनी,
तोरा हमरा बीचें फूट।
संतालऽ क॑ देॅ रहलऽ छौं,
अखनी पूरा-पूरा छूट।। 37।।
पर नैं भूलऽ भैया कखनूं,
संतालऽ के अगुआ श्याम।
अंग्रेजऽ पर पानी फेरै,
के नैं जानै उनको नाम।। 38।।
पहाड़िया के अगुआई म॑,
रमणा देलक धूम मचाय।
शिब्बू आन्दोलन कारी क॑,
केना देतै कोय भुलाय।। 39।।
करिया पुजहर डोम्बा सब्भे,
हमरा बाबू जी के साथ।
अंग्रेजऽ क॑ तंग करै म॑,
सदा बटैनें छेलै हाथ।। 40।।
गुरूधरमा, गेढ़वा सही म॑,
पहाड़िया के कर अगुआय।
अंग्रेजऽ क॑ देनें छेलै,
लड़तें-लड़तें धूल चटाय।। 41।।
सब होलै पर बात यह॑ छै,
मिललै पहाड़िया संताल।
सामूहिक विद्रोह करलकै,
≈ अंगेजऽ लेॅ जंजाल।। 42।।
सर्वेश्वरी महारानी के,
पीटौं अखनी हम्हूं ढोल।
हमरा खातिर राज्य कोष के,
देनें छै जौनें मुंह खोल।। 43।।
पहाड़िया-संताल समूचा,
अगर एक नैं होभेॅ भाय।
दोनों जात रसातल जैभेॅ,
हम्में कहै छिहौं समझाय।। 44।।
अभिनंदन, अभिवादन करनें,
तिलका उतरै मंचोॅ सें।
आम सभा के लोग वहां पर,
जमलऽ रहलै संचोॅ सें।। 45।।
कोकराह सें आगू हटिया,
तबेॅ पलामू आबै छै।
गिरिडीह, दुमका, जामताड़ा,
सगरे सभा जमाबै छै।। 46।।
संताली बलिदानी दस्ता,
साथें आबै अंगोॅ म॑।
ज≈राह, गेढ़वो जहां पर,
पड़लऽ छेलै जंगोॅ म॑।। 47।।
क्लीवलैण्ड क॑ पता बताबै,
गान्दो जासूस आबी क॑।
जे मतवाला क्षणिक लोभ के,
चना-चबेना पाबी क॑।। 48।।
गद्दारी के चलतें पहिनें,
महेशपुर ठुकरैनें छै।
फेनूं तिलका क॑ पकड़ाबै,
केरऽ कसमों खैनें छै।। 49।।
गान्दो के झांसा म॑ आबी,
तिलका पड़लै फेरऽ म॑।
≈ पापी तेॅ अखनी मिललऽ,
डगलस केरऽ जेरऽ म॑।। 50।।
सर्वेश्वरी बात जानी क॑,
तिलका क॑ बोलबाबै छै।
तिलका तमाम दस्ता साथें,
महेशपुर दिश आबै छै।। 51।।
पोल खुलै जब गान्दो केरऽ,
काम तमाम कराबै छै।
अबरी गान्दो बढ़िया नांकी,
करनी के फल पाबै छै।। 52।।
ज≈राह, गेढवो सिरऽ पर,
भार यहां के छोड़ी क॑।
ढिब्बू, गरभू साथें तिलका,
चलै जरा मुंह मोड़ी क॑।। 53।।
बीहड़ रस्ता जंगल केरऽ,
जल्दी गोड़ बढ़ाबै छै।
दम मारै छै चलतेंं-चलतें,
जब हसडीहा आबै छै।। 54।।
गान्दो केरऽ कथा-कहानी,
डगलस कानें जाय।
डगलस तखनी अंग्रेजऽ के,
सेनापति कहलाय।। 55।।
क्लीवलैण्ड के सोची-सोची,
मन गेलै पगलाय।
तिलका के आगू नैं चललै,
एक्को गो चतुराय।। 56।।
अबरी अपनों ध्यान लगाबै,
महेशपुर के राज।
जहां सर्वेश्वरी विधवा के,
माथा ≈पर ताज।। 57।।
शिब्बू के मरला पर रानी,
सर्वेश्वरी हतास।
अंधकार आंखी के आगू,
मिटलै हर्ष-हुलास।। 58।।
देश भक्त होला के पहिनें,
ज≈राह कुछ पोल।
सर्वेश्वरी महारानी के,
देनें छेलै खोल।। 59।।
तहिया सें रानी के ≈पर,
क्लीवलैण्ड के ध्यान।
लगलऽ छेलै भीतर-भीतर,
हमरा छै अनुमान।। 60।।
महेशपुर राजऽ म॑ भेजै,
तब भारी जासूस।
रानी तेॅ पहिन्हैं सें छेलै,
जरा-जरा मायूस।। 61।।
सत्रह सौ तेरासी आधा,
क्लीवलैण्ड छेलै मति मन्द।
रानी क॑ आपन्हैं महलऽ म॑,
करी देलकै तखनी बन्द।। 62।।
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Angika Poetry : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी
तिलकामाँझी | छठऽ सर्ग |अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-6 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra
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