तिलकामाँझी
पहिलऽ सर्ग | दोसरऽ सर्ग | तेसरऽ सर्ग | चौथऽ सर्ग | पाचमां सर्ग | छठा सर्ग | सतमा सर्ग | अठमा सर्ग | नौमां सर्ग | दसमा सर्ग | एगारमा सर्ग | बरहमा सर्ग | तेरहमा सर्ग | चौदहमा सर्ग
तिलकामाँझी
पाँचमऽ सर्ग ()
— हीरा प्रसाद हरेंद्र —
सबौरऽ जंगलवा म॑, मंगल मनाबै जौनें,
ओकरा उजाड़ै पर ध्यान क्लीवलैण्ड के।
बाहरऽ सें ढेरी आबै, आवासो यहां बनाबै,
देहोॅ क॑ जराबै ≈ मकान क्लीवलैण्ड के।
पहाड़िया नाश करेॅ, सगरे संतालेॅ भरेॅ,
मनों म॑ छै एक्के अरमान क्लीवलैण्ड के।।
ओकरा मालूम कहां, लुकी-छिपी, जहां-तहां।
पहाड़िया मेटइतै गुमान क्लीवलैण्ड के।। 1।।
शिब्बू के निधन पर, जबड़ा के तन पर,
धरमू के मन पर खाली आबेॅ ध्यान छै।
पहाड़िया हित देखी, विदेशी भुलाबेॅ शेखी।
आबेॅ होना दून्हूं क॑ जरूरी अन्तर्ध्यान छै।।
दौड़ी-धूपी, खोजी-खाजी, मिट्ठॉे-मिट्ठोॅ बोली बाजी,
संगठनो फेनूं सें करै के अरमान छै।
दोनों एक मत होलै, दिशा दक्षिणें म॑ गेलै,
उड़ीसा के जंगलेॅ जहां कि सुनसान छै।। 2।।
जंगल पहड़बा म॑, सिंहोॅ के दहड़बा म॑,
सगरे पहाड़िया के बीतै दिन-रात छै।
तीरवा-धनुषवा सें, पशुवा-मनुषवासें,
राखै हर पल लड़ै-भीड़ै के औकात छै।
जहां-तहां बसै छै, पहाड़वा के ≈परऽ पेॅ,
तन-मन-धनमा सें, सब्भे एक्के साथ छै।
ईमान-धरम केरऽ, एकरा म॑ बात खूबे,
बैठी क॑ बिचारै जहां अपनों जामात छै।। 3।।
जंगल-जंगल घूम के, करै संगठन काम।
जैजां बसै पहाड़िया, घूमै ग्रामे-ग्राम।।
घूमै ग्रामे-ग्राम, सुनै सब्भै के बतिया।
सब्भै केरऽ साथ, बिताबै दोन्हूं रतिया।।
लगै बड़ा आनन्द, सदा मंगल ही मंगल।
धरती पर के स्वर्ग, कहोॅ छेकै ई जंगल।। 4।।
बंदर कहूं पहाड़ पर, तोता बोलै बोल।
कोयल केरऽ बोल तेॅ, जेना मिश्री घोल।।
जेना मिश्री घोल, झरै छै झरना झर झर।
चिड़िया कर जल पान, उड़ै आकाशें फर-फर।।
मनमोहक सब दृश्य, सदा सुखदाई सुन्दर।
निर्भय घूमै बाघ, चिता, भालू रड्. बंदर।।5।।
जानै जबड़ा नाम सें, शिब्बू के संतान।
करना चाहै ओकरऽ, अंग्रेजैं पहचान।।
अंगेजें पहचान, कि मन धरमू के डोलै।
तिलका मांझी नाम, सदा जबड़ा क॑ बोलै।
पहाड़िया समुदाय, सही समझैलऽ मानै।
सबक॑ दै समझाय, राज जौनें नैं जानै।।6।।
मन भावन बोली सदा, बोलै तिलका जाय।
सेवा आदर सब करै, पहाड़िया समुदाय।।
पहाड़िया समुदाय, लगाबै सब्भे नारा।
नेता हमरऽ आय, धरा पर सबसें प्यारा।।
सब्भैं मानै काम, सदा तिलका के पावन।
मोहै सबके मोंन, जहां बोलै मन भावन।।7।।
तिलका मांझी नाम हमेशा सब्भे बोलै।
धरमू कखनूं जाय, केकरो मोंन टटोलै।।
धरमू दै आदेश, बनाबें, रूप निराला।
घूमें द्वारे-द्वार, सदा होलऽ मतवाला।। 8।।
सुधारवादी तोंय, बनी जो नेता सुन्दर।
देशोॅ के जय गान, बिराजौ तोरा अंदर।।
स्थापित कर पैठ, यह॑ छौ सुन्दर मौका।
होतौ तब भव पार, समर सिंधु सें नौका।। 9।।
ज्ञानी गुरु फैलैनें अखनी,
डायन-ओझा रोगोॅ क॑।
अंगधरा पर आबी-आबी,
भड़कैनें छै लोगोॅ क॑।। 10।।
पहाड़िया समुदायोॅ ≈पर,
आडम्बर के फेरा छै।
देवी-देवा माथा ≈पर,
डाली देनें डेरा छै।। 11।।
धार्मिक कुरीति के खिलाफ म॑,
जे भी आगू ऐलऽ छै।
वह॑ सुधारवादी व्यक्ति के,
‘बाबा’ नाम धरैलऽ छै।। 12।।
धरमू केरऽ बातो मानी,
तिलका आगू आबै छै।
गलत प्रथा, कुरीति मेटाबै,
सबके मन हरसाबै छै।। 13।।
ज्यादा देर कहां लगलै जे,
तिलका ‘बाबा’ कहलाबै।
बाबा तिलका मांझा नामें,
आन्दोलन भी चलबाबै।। 14।।
हिन्नें तिलका खूब जमाबै,
बाबा रूपें रंग।
हुन्नें धरमू धीरज धरनें,
पहाड़िया के संग।। 15।।
अंतर्हन रही क॑ धरमू,
करै संगठन कार्य।
पहाड़िया के हक म॑ छेलै,
जे बिल्कुल अनिवार्य।। 16।।
यै बीचोॅ म॑ घटलै घटना,
अनहोनी र≥् एक।
ज≈राह के टूटी गेलै,
भीतर मन के टेक।। 17।।
ज≈राह के बेटा होलै,
जखनी सर्प शिकार।
ज≈राह क॑ लागेॅ लगलै,
जीवन ई बेकार।। 18।।
इकलौता के शोक समैलै,
झलकै सगर अन्हार।
की-की करतै ई जग्घोॅ पर,
म्यानों के तलवार।। 19।।
धरमा पहाड़िया क॑ छेलै,
झाड़-फूक के ज्ञान।
अगर चाहै तेॅ विष उतारी,
राखेॅ पारेॅ जान।। 20।।
ज≈राह के गद्दारी सें,
पहाड़िया समुदाय।
जान बचैनें भागै सब्भे,
सब गेलै छितराय।। 21।।
शिब्बू क॑ पकड़ाबै वाला,
खूंखार ज≈राह।
भरलऽ छेलै पहाड़िया के,
अन्दर अभियो आह।। 22।।
देश भक्त के ॉदय पटल पर,
भरलऽ छेलै आन।
नैं चाहै कि धरमू जियाबै,
ज≈राह संतान।। 23।।
मगर बिना कुछ भेद-भाव के,
धरमू फूकै मंत्र।
बेटा के जीथैं सब भूलै,
ज≈राह, षड्यंत्र।। 24।।
ज≈राह क॑ दियेॅ लागलै,
अपने दिल धिक्कार।
बदली गेलै वहीं ओकरऽ,
धोखा के संसार।। 25।।
धरमू के गोड़ोॅ पर गिरलै,
ज≈राह तत्काल।
मिललै दोनों गुट वोही ठां,
क्लीवलैण्ड के काल।। 26।।
‘सेनाध्यक्ष कर्णगढ़ केरऽ’,
≈ पद काटेॅ-खाय।
धरमू केरऽ उदारता म॑,
मन गेलै लपटाय।। 27।।
सैनिक शिविर कर्ण गढ़ वाला,
ज≈राह कर अन्त।
धरमा-जबड़ा के गिरोह म॑,
मिललै जाय तुरंत।। 28।।
धरमा, जबड़ा सबके तखनी,
नाचै छै मनमोर।
मनसा जे होजेज बनाबै,
सब होलै कमजोर।। 29।।
पहाड़िया के ताकत बढ़लै,
क्लीवलैण्ड घबड़ाय।
ज≈राह आन्दोलन ठानी,
दै आतंक मचाय।। 30।।
फूट-फाट के अन्त करी क॑,
पहाड़िया समुदाय।
दिल-दुश्मन के दहलाबै लेॅ,
दै छै ढोल बजाय।। 31।।
देश भक्त केरऽ श्रेणी म॑,
ज≈राह अब आय।
आतंकोॅ सें अंग्रेजऽ क॑,
तब दै छै थर्राय।। 32।।
ज≈राह आतंक मचाबै,
जखनी बड्डी जोर।
अंग्रेजऽ के ध्यान समूचे,
ज≈राह के ओर।। 33।।
तेरासी के प्रथम तिमाही,
अंग्रेजऽ लाचार।
गेढ़वो कुंवर, ज≈राह सें,
मानेॅ लगलै हार।। 34।।
क्लीवलैण्ड कुच्छू क्षण लेली,
होलै बड़ी उदास।
लागै जेना हुवेॅ लागलै,
संकट के आभास।। 35।।
अवसरवादी अंग्रेजो तब,
बदलै अपनों राह।
सेना बीचें दिखलाबै छै,
बनावटी उत्साह।। 36।।
शिब्बू क॑ फांसी पड़ला पर,
कर जासूस बहाल।
धरमा-जबड़ा के खोजऽ म॑,
रहै सदा बेहाल।। 37।।
हुन्नें तिलका धरमू घूमै,
संतालऽ के गांव।
धूपें जखनी वदन जलाबै,
बैठै गाछी छांव।। 38।।
अपनों धुन म॑ मतवाला जे,
जरा भूख नैं प्यास।
जन्नें पाबै घोल्टै छेलै,
शैया मखमल घास।। 39।।
तिक्खोॅ घूपो दुपहरिया के,
लू बरसाबै भान।
गर्मी केरऽ मौसम ऐलै,
मन होलै अनुमान।। 40।।
कालाहण्डी, गंजामोॅ म॑,
तिलका-धरमू साथ।
फैलैनें संतालऽ आगू,
सहयोगोॅ के हाथ।। 41।।
अंग्रेजऽ के नीति यहां पर,
करना छै नाकाम।
पहाड़िया संताल मिली क॑,
लड़बै आठो याम।। 42।।
खूब घूमलै गाम॑-गाम॑,
वहीं बिताबै रात।
संतालऽ पर असर करलकै,
तिलका केरऽ बात।। 43।।
धरमू केरऽ चेला ढिब्बू,
जे छेलै संताल।
आबी गेलै सहयोगोॅ म॑,
वोही ठां तत्काल।। 44।।
संतालऽ क॑ साथ करी क॑,
ताकत खूब बनाबै छै।
देश भक्ति के भाव युवक म॑,
भाषण सें समझाबै छै।। 45।।
तिलकामाँझी
पहिलऽ सर्ग | दोसरऽ सर्ग | तेसरऽ सर्ग | चौथऽ सर्ग | पाचमां सर्ग | छठा सर्ग | सतमा सर्ग | अठमा सर्ग | नौमां सर्ग | दसमा सर्ग | एगारमा सर्ग | बरहमा सर्ग | तेरहमा सर्ग | चौदहमा सर्ग
Angika Poetry : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी
तिलकामाँझी | पाँचमऽ सर्ग | अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-5 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra
No comments:
Post a Comment