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Thursday, February 8, 2018

तिलकामाँझी | तेरहमा सर्ग |अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-13 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra

तिलकामाँझी


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तिलकामाँझी


तेरहमा सर्ग ()


— हीरा प्रसाद हरेंद्र —


नीना के मन पूरा जंचलै,
पिता सूरजा केरऽ बात।
बनवारी क॑ मारै लेली,
सोचेॅ लगलै तब दिन-रात।। 1।।
बनवारी के आगू गेलै,
तब नीना बिल्कुल नरमाय।
कखनूं बनवारी क॑ देखी,
आधोॅ मन सें दै मुस्काय।। 2।।
नैन-वाण सें घायल करना,
नीना केरऽ होलै चाल।
बनवारी पर फेकै कखनूं,
प्यार-मुहब्बत केरऽ जाल।। 3।।
नीना केरऽ हाव-भाव सें,
बनवारी ऐलै नजदीक।
नीना केरऽ नैन-निशाना,
बैठी गेलै मानोॅ ठीक।। 4।।


बनवारी के चलतें गेलै,
नीना माथा के सिन्दूर।
बनवारी कहलाबेॅ लगलै,
देशोॅ के द्रोही मशहूर।। 5।।


होलऽ छै प्रेमोॅ म॑ पागल,
नीना देनें छै ललचाय।
नीना केरऽ आगू-पीछू,
घूमै छै बनवारी आय।। 6।।


गिरै पहाड़ी झर-झर पानी,
झरना केरऽ रूप बनाय।
गाछ-गछेली चारो तरफें,
परम मनोहर दृश्य लखाय।। 7।।


शिशिर सुहावन Ωतु मन भावन,
करै बसन्तोॅ के अगुआय।
भौंरा फूलों के मुख चूमी,
भागै धड़फड़ शोर मचाय।। 8।।


झरना के बगलऽ में शोभै,
मौरऽ नांकी गाछ अशोक।
नीना रोजे पहुंचै छेलै,
देखेॅ दृश्य, मिटाबेॅ शोक।। 9।।


वहीं अचानक पहुंची गेलै,
बनवारी देखी हरसाय।
हाथ लेलकै नीना केरऽ,
पकड़ी अपनों हाथ बढ़ाय।। 10।।


तनिक बुरा नैं मानै नीना,
दिल-दिमाग के आग छिपाय।
हाथ, हाथ सें, खीचीं बोलै,
मधुर बचन थोडो़ॅ मुस्काय।। 11।।
तिलका क॑ तोहीं पकड़ाभो,
डेढ़ सौ जे रहै ईनाम।
≈ लेॅ क॑ राखनें कहां छोॅ,
वै म॑ नैं चूलऽ छौं घाम।। 12।।
≈ पैसा सें बढ़िया जेबर,
हमरा आगू रखोॅ बनाय।
बात मानभों तभिये तोरऽ,
बोलै नीना कुछ इठलाय।। 13।।
बनवारी पर जादू अहिनों,
असर करै नीना के बोल।
बोली अहिनों मिट्ठो बोलै,
जेना की मिश्री के घोल।। 14।।
धरै रुपैया आगू तखनी,
बोलै नीना सें फरमाय।
जे मन आभौं आय गढ़ाबोॅ,
जेबर अपनां हाथें जाय।। 15।।


नीना थाम्है हाथ रुपैया,
बनवारी पूछै छै बात।
नीना रानी जरा बताबोॅ,
फेनूं कहिया देभेॅ साथ।। 16।।
रूपोॅ के कैंची सें कतरी,
नीना बनवारी के मोॅन।
बोलै प्यार-मुहब्बत आगू,
बेकारे दुनिया के धोॅन।। 17।।
इन्तजार दू-चार दिनोॅ तक,
अबेॅ कहां छै ज्यादा देर।
विधवापन क॑ त्यागी पहिनें,
सजबै-धजबै, देबै टेर।। 18।।
बहरा क॑ जों कान मिलै छै,
अन्हरा क॑ जेना की आंख।
पंख कटलका पक्षी जेना,
पाबै सुन्दर दोनों पॉख।। 19।।
ठीक वही ना गदगद छेलै,
बनवारी के विह्वल मोॅन।
सोचै-समझै खूब विचारै,
नीना आगू की छै धोॅन।। 20।।


नीना गेलै घोॅर, मंगाबै,
एगो सुन्दर तेज कटार।
झुमका, पायल, नथिया,
टीका, गल्ला केरऽ नकली हार।। 21।।
तेल लगाबै गमकै वाला,
आभूषण सें अंग सजाय।
बनवारी क॑ जेना-तेना,
नीना भेजी खबर बुलाय।। 22।।
गुड़ पर मक्खी जेना दौड़ै,
बनवारी के छेलै हाल।
रक्षाकर्मी मन-मन सोचै,
होलै कोनों कहीं बबाल।। 23।।
नीना केरऽ रूप देखथैं,
बनवारी मतवाला होय।
नाचेॅ लगलै सुध-बुध भूली,
बोलै बड़बड़ पागल कोय।। 24।।
जरा इशारा नीना केरऽ,
रक्षाकर्मी बाहर जाय।
बरगद गाछी नीचें सब्भे,
बैठै आसन वहीं जमाय।। 25।।


महुआ, ठर्रा के पोचा म॑,
रखै नशीली चीज मिलाय।
बनवारी क॑ अपनां हाथें,
नीना देलक खूब पिलाय।। 26।।
चूड़ी के झनकार सुनी क॑,
बनवारी छेलै मदहोश।
महुआ, ठर्रा पीबी-पीबी,
बनवारी होलै बेहोश।। 27।।
अवसर केरऽ लाभ उठाबै,
नीना लेलक हाथ कटार।
बनवारी के देहोॅ ≈पर,
राखै गल्ला केरऽ हार।। 28।।
सम्हरै के मौका देनें बिन,
छलनी,-छलनी करै शरीर।
धीरें-धीरें अंग-अंग क॑,
जन्नें-तन्नें देलक चीर।। 29।।
गिरलै सब्भे खून धरा पर,
देहोॅ म॑ नैं रहलै जान।
बरगद गाछी तर बैठी क॑,
की करतै रक्षक अनुमान।। 30।।


नीना भेजै बनबारी क॑,
ऑखी के आगू यमलोक।
अन्यायी के नाश जरूरी,
कहिया कौनें रूकते रोक।। 31।।


वही कटारऽ सें वोही क्षण,
मौतोॅ क॑ लै लगा लगाय।
देश भक्त के श्रेणी अपनों,
नीना लेलक नाम लिखाय।। 32।।


बापोॅ के बदला लै तिलका,
क्लीवलैण्ड क॑ मारी क॑।
तिलका के बदला लै नीना,
नरक भेज बनवारी क॑।। 33।।



तिलकामाँझी


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Angika Poetry  : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी

 

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