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Thursday, February 8, 2018

तिलकामाँझी | पहिलऽ सर्ग |अंगिका कविता | हीरा प्रसाद हरेंद्र | TilkaManjhi | Canto-1 | Angika Kavita | Hira Prasad Harendra

तिलकामाँझी


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तिलकामाँझी
- पहिलऽ सर्ग -
(अंग दर्शन, अंग महिमा आरू विषय प्रवेश)


— हीरा प्रसाद हरेंद्र —


नियोग पह्ति दीर्घतमा के,
काम करलकै जब भारी।
पुत्र प्राप्त कर खुशी सुदेष्णा,
मुद-मंगल आँगन-द्वारी।।3।।
‘अंग’ नाम वोही बेटा सें,
अंग देश कहलैलऽ छै।
लोमपाद अंगोॅ के राजा,
यहो कहानी ऐलऽ छै।।4।।
जकरऽ पोता चंप नाम पर,
चंपा नगरी कहलाबै।
चंप वंश म॑ अधिरथ-राधा,
दोनों के चर्चा आबै।।5।।
वोहीं पैलक एक पिटारी,
गंगा म॑ जैतें बहलऽ।
वोही म॑ बच्चा कर्ण रहै,
धर्म-ग्रंथ के छै कहलऽ।।6।।
आगू चली वही कर्णों सें,
युह् भूमि थर्राबै छै।
बड़का-बड़का महारथी के,
देखी सिर चकराबै छै।।7।।
कौरव-पाण्डव युह् करै जब,
पाण्डव के पलड़ा भारी।
कौरव दल सें कर्ण करै तब,
लड़ै-भिड़ै के तैयारी।।8।।
जात-पात के बात निकललै,
कर्ण कहै तब ललकारी।
धनुष-बाण सें फड़ियाना छै,
बेमतलब लोकाचारी।।9।।
कर्णों केरऽ बात सुनै जब,
अर्जुन गरजी बोलै छै।
कर्णों के अपमान करैलेॅ,
राज छिपलका खोलै छै ।। 10।।
कोन देश के शासन-सŸा,
कोन देश के राजा छै।
बोली सें लागै छै अहिनों,
बिना सुरऽ के बाजा छै।। 11।।
दुर्योधन के कान पड़ै छै,
पाण्डव के तीक्खोॅ बोली।
कर्णों सिर पर अंग मुकुट दै,
माथा पर चन्दन रोली।। 12।।
अंगराज कहलैलै तब सें,
अंग प्रदेश निराला छै।
कर्णो केरऽ दानशीलता,
सुनै-सुनाबै वाला छै।। 13।।
पुत्रऽ केरऽ मांस बनाबै,
साधू के सम्मानों म॑।
कवच ॉदय पर जनम घरी सें,
कुण्डल शोभै कानों म॑।। 14।।
चण्डी माय क॑ खुश करलकै,
त्याग-तपस्या बातोॅ सें।
दान करै सावा मन सोना,
जौनें अपना हाथोॅ सें।। 15।।
‘चम्पक श्रेष्ठी कथा’ बताबै,
चम्पापुरी पुराना छै।
करघा केरऽ खटखट-फटफट,
अभियो ताना-बाना छै।। 16।।
सुभद्रांगी यही चम्पा के,
माय अशोकोॅ के मानोॅ।
बाला केरऽ पत्नी बिहुला,
घूमै इन्द्रासन जानोॅ।। 17।।
इन्द्रासन सें पतिदेवोॅ के,
प्राण दान म॑ पाबै छै।
बाला-बिहुला केरऽ गाथा,
लोक धुनों म॑ गाबै छै।। 18।।
बिÿमशिला बहाबै गंगा,
ज्ञानों के संसारऽ म॑।
अजगैबी के धाम सुहाबै,
गंगा के मझधारऽ म॑।। 19।।
मंदारऽ के महिमा जानी,
सबके मन हरसाबै छै।
पापनाशिनी पपहरणी म॑,
लाखो लोग नहाबै छै।। 20।।
स्वतंत्रता संग्राम यहां सें,
पहिनें होलऽ छै जारी।
यै धरती के वीर सदा सें,
दुश्मन पर पड़लै भारी।। 21।।
पहाड़िया जनजाति लड़ाकू,
नाम उजागर होलऽ छै।
जकरऽ कथा-कहानी निश्चय,
गंगा जब सें धोलऽ छै।। 22।।
आहिड़ी, चेंगरू, गुरूधरमा,
करिया, पुजहर आबै छै।
डोम्बा, जबड़ा, डबुआ, गंगा,
सदा शहीद कहाबै छै।। 23।।
डिग्गन केरऽ बेटा शिब्बू,
शिब्बू के जबड़ा होलै।
तिलका मांझी इतिहासोॅ म॑,
वोही जबड़ा क॑ बोलै।। 24।।
उ तिलका मांझी केरऽ गाथा,
आगू छै बिस्तार।
जकरऽ कथा-कहानी जानै,
छै सौंसे संसार।। 25।।



तिलकामाँझी


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Angika Poetry  : Tilkamanjhi / तिलकामाँझी
Poet : Hira Prasad Harendra / हीरा प्रसाद हरेंद्र
Angika Poetry Book / अंगिका काव्य पुस्तक - तिलकामाँझी

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