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Thursday, September 10, 2020

कोरा मन | Angika Kavita | Kora Man | अंगिका कविता | डॉ. संयुक्ता भारती | Dr. Sanjukta Bharti

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
कोरा मन | Kora Man
डॉ. संयुक्ता भारती  | Dr. Sanjukta Bharati

कोरा मन' के कोरा पट पर
प्रेम -प्रीत के लगन बहुत छै,

इच्छा के हर ताप प' सुलगी
जीवन -जोत के अगन बहुत छै ,

घन' रं उमड़ी-घुमड़ी क' भी
भाव प्रिय के सघन बहुत छै ,

रूप कहाँ छै? कोय पलक प'
कैन्हे' फेरू मन मगन बहुत छै,

प्रेम -पवन के एक सिसकी स'
सांस-सांस म' जलन बहुत छै,

आशा के डोरी क' पकड़ी
बस ! बिश्वास के वरण बहुत छै,

कल्प विरह के बीती जैतै
नजर-नजर के मिलन बहुत छै,

नय- नीर क' अर्घय बनाय क
हृदय समर्पण सरल बहुत छै ... !

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
कोरा मन | Kora Man
डॉ. संयुक्ता भारती  | Dr. Sanjukta Bharti

 


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