Angika Kavita | अंगिका कविता
कोरा मन | Kora Man
डॉ. संयुक्ता भारती | Dr. Sanjukta Bharati
कोरा मन' के कोरा पट पर
प्रेम -प्रीत के लगन बहुत छै,
इच्छा के हर ताप प' सुलगी
जीवन -जोत के अगन बहुत छै ,
घन' रं उमड़ी-घुमड़ी क' भी
भाव प्रिय के सघन बहुत छै ,
रूप कहाँ छै? कोय पलक प'
कैन्हे' फेरू मन मगन बहुत छै,
प्रेम -पवन के एक सिसकी स'
सांस-सांस म' जलन बहुत छै,
आशा के डोरी क' पकड़ी
बस ! बिश्वास के वरण बहुत छै,
कल्प विरह के बीती जैतै
नजर-नजर के मिलन बहुत छै,
नय- नीर क' अर्घय बनाय क
हृदय समर्पण सरल बहुत छै ... !
Angika Kavita | अंगिका कविता
कोरा मन | Kora Man
डॉ. संयुक्ता भारती | Dr. Sanjukta Bharti
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