Angika Kavita | अंगिका कविता
कैन्हें बाँटै छो | Kanhein Bantai Chhow
by बैकुंठ बिहारी | Baikunth Bihari
गइया केरोॅ दूधो बाँटोॅ बथान कैन्हें बाँटै छो
एक्के मालिक के नाम राम, खुदा आरो ईशु
मन्दिर बाँटोॅ मस्जिद बाँटोॅ भगवान कैन्हें बाँटै छोॅ
धर्मो के तीर सें वेधोॅ नै दिल भय्यारी के
तान बाँटोॅ गान बाँटोॅ इन्सान कैन्हें बाँटोॅ छोॅ
यहाँ औतार हुवै गोविन्द, शिवा, गाँधी के
खेत बाँटोॅ रेत बाँटोॅ खलिहान कैन्हें बाँटै छोॅ
लहरी-लहरी सरंगोॅ में फूँकै जे शंख मिल्लत के
आन बाँटोॅ शान बाँटॉे निशान कैन्हैं बाँटै छोॅ
कन्या कश्मीर तलक बिहारी छै आपने धरती
भक्ति बाँटोॅ युक्ति बाँटोॅ हिन्दुस्तान कैन्हंे बाँटे छोॅ
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