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Saturday, August 22, 2020

ठिठुआ | Angika Kavita | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Thithua | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

 


ठिठुआ | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Thithua | Angika Kavita | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan


नै करँ कौवा काँव-काँव,
केकरs तों उचारै छैं नाँव?
हौ दिन अखनी कहाँ छै,
कोय आब' कि काँहूँ जाँव!

लोग लोगs सँ छिपै छेलै,
देख छिपना ज़रूरी भै गेलै,
शहर बाला रह' शहरs म'
गाँव बालाँ सम्हार' आब' गाँव!

डेनs बनाय क खूब उड़लौं,
ठिठुआ देखैलौं भगबान जी क',
आब' जब' हुनी देखैलकs,
बन्हाय गेलै सब रs हाँथ-पाँव!

याद आबै छ हौ जमाना,
धूरा-कादs सँ नै छेलै परहेज,
हें बिजली-पंखा कहाँ छेलै
रौद-गर्मी रs दबा गाछी रs छाँव।

जौं-जौं सहूलियत बढ़लs गेलै,
आदमी सिनी अदमगन्नs होलs गेलै,
भागलs गेलै शहर सब लोग,
आरो छुटलs गेलै स्वर्ग-नाकी गाँव।

आब' असरा देखौं कि रस्ता खुल',
जेकरा सँ शुरू होय जाय आन-जान,
मन हरस' मिलला-जुलला सँ,
जुड़लs रह' हरदम शहर आरो गाँव।

हौ दिन अखनी कहाँ छै,
कोय आब कि काँहूँ जाँव!

अरुण कुमार पासवान
20 अगस्त,2020


ठिठुआ | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान
Thithua | Angika Poetry | Arun Kumar Paswan

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