Angika Kavita | अंगिका कविता
तरसै छै प्राण | Tarsai Chhai Pran
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal
दुबरी पातरी
लम्बी छरहरी
कसलो बदन
साॅवरी सूरत पर
चाॅद सितारा ।
हिरणी रं ऑखी में
कजरा के धार ।
भौंहाॅ कमान
मारै छै वाण ।
बेसर में-हीरा पन्ना जङलो
दिन दुपहरिया-साझको लाली में
रात केरो चॅदा में
मिली-जुली चमकै छै
ङोलै छै जान ।
सावन में-सहमै छी
भादो में -कानै छी
बिजली ङराय छे
आबी जा
तरसै छै प्राण ।
9-8-2020
Angika Kavita | अंगिका कविता
तरसै छै प्राण | Tarsai Chhai Pran
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal
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