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Tuesday, August 18, 2020

कहरै छै गीत एक | Angika Kavita | अंगिका कविता | प्रीतम विश्वकर्मा 'कवियाठ' | Kahrai Chhai Geet Ek | Angika Poetry | Pritam Vishwakarma 'Kaviyath'

 



कहरै छै गीत एक | अंगिका कविता | प्रीतम विश्वकर्मा 'कवियाठ'
Kahrai Chhai Geet Ek | Angika Kavita | Angika Poetry | Pritam Vishwakarma 'Kaviyath'


कहरै छै गीत एक पवन पुरबैया,
लुबुर-लुबुर ठोर करै के छै सुनबैया।

मारै गुलेल ऑरो पूछै छै हाल हो,
हम्मे हैरान छी देखी के चाल हो,
बदलै छै नियत दिने-दुपहरिया।
कहरै छै गीत...

कटी-कटी सिसकै छै हुल्लड़ बयार मे,
मनो के पीत मारी तन झुलसै दुलार मे,
कखनु लागै भोर ऑरो कखनु अन्हरिया।
कहरै छै गीत....

ऐके हिसाब छै इ खाली किताब मे,
व्यथा- व्यस्त छै भट्टी के ताव मे,
नै खोजो बैसाख मे मगन ठंडैया।
कहरै छै गीत....

छुऐ छै तन की ऑरो छुए गगन छै,
सुख-दुख नै मानै कैहनो मगन छै,
देखी के कलपै छै जीवन अधबटैया।
कहरै छै गीत...
फुर्र-फुर्र फुहरै छै मन हमरो कुड़ै छै,
तितकी भर इन्जोरो के बोड़नी से बोढ़ै छै,
मूहँ लहराबै छै हरकी-लाल मीरचैया।
कहरै छै गीत....

कहरै छै गीत एक | अंगिका कविता | प्रीतम विश्वकर्मा 'कवियाठ'
Kahrai Chhai Geet Ek| Angika Poetry | Pritam Vishwakarma 'Kaviyath'


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