हमरौ परानों में आबौ | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Hamrow Paranow Mein Aabow | Angika Kavita | Ramchandra Ghosh
तोरौ रूप - सरूप कत्तै ताजा - टटका
तोरे पंथ जोहीं रहलौ छी दिन - रात
झप से आबी हमरौ परानों में समाय जा
तों रोजे - रोज नैका रूप धरि के आबौ !
तों गंधौ में बसलौ , सभे रंगों में हँसै छौ
तोरौ छुतें हमरौ रूआँ - रूआँ पुलकित
अमरित नांकी तरंगों में नाचै ई हिरदय
हमरौ मुग्ध मुँदलौ दोनों आँखीं में बसी जा !
तों निरमल , तों उज्जवल , तों मनोहर
तोरौ सुन्दर रसीलौ प्रशांत रुप भावै
तोरै सुधि में रमलौ रहै हमरौ हर पल
तोरौ गुण गाबी गाबी हम्में होय छी हर्षित !
हमरौ सुखौ में हमरौ दुखौ में तों आबौ
हमरौ हर करमों में हमरौ हर धरमों में
तोंही तों समैलौ छौ हे हमरौ परान प्रिय
नया नया बाना धरि रोज हमरा लग आबौ !!
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सौजन्य : गीतांजलि ( कवीन्द्र रबीन्द्रनाथ टैगोर )
अंगिका अनुवाद : रामचन्द्र घोष
हमरौ परानों में आबौ | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Hamrow Paranow Mein Aabow | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh
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