हमर अंगी गाँव | अंगिका कविता | निलय रंजन सिंह
Hamar Angi Gaon | Angika Kavita | Angika Poetry | Nilay Ranjan Singh
हमर गाँव कितना सुंदर बरूआ किनारे बसल छै अंग देश के रंग में डुबल सुगंध प्यार के फैलल छै। पकल आम मालदहिया चूड़ा और चावल कतरनी खेत खलिहान में लागत फसल कोठी हमरो तोहरो भरल छै। गौरीपुर के चलें मेला देखियै बासा पर सें भी सब चलल छै चिंतापूर्णी माता बुलैलकै हमरा मन हर्ष से मगन आय उछलै छै। चानन किनारे बैठें और देखें पुराना गौरव सब तरफ बिखरल छै विक्रमशिला विश्वविद्यालय अति सुन्दर जेकर कीर्ति पताका फैलल छै। हमर वर्तमान भी नै छै छोटा अंगिका भाई सब तरफ पहुंचल छै जड़ से जुड़ै के देखें अपना कितना अच्छा मौका मिलल छै।
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