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Thursday, August 27, 2020

बाबू हो, बाबू हो, डोॅर लागे छै | Angika Kavita | अंगिका कविता | शम्भुनाथ मिस्त्री | Babu Ho,Babu Ho, Dor Lagai Chhai | Shambhunath Mistry

बाबू हो, बाबू हो, डोॅर लागे छै | अंगिका कविता | शम्भुनाथ मिस्त्री
Babu Ho,Babu Ho, Dor Lagai Chhai | Angika Kavita | Shambhunath Mistry

 (संदर्भ : कोरोना काल  (अंगिका))

पिपरा तोॅर नै छाहुर छै

हवा समैलोॅ माहुर छै

दीन्हें घूरै भूत बेताल

कीची दाँत बजावै गाल

 सगरो रहता हाट-बजार

 हेकरै चलती छै दमदार ;


        आपुस सब्भै पोॅर लागे छै

        बाबू हो, बाबू हो, डोॅर लागे छै l


जेॅकरा छूभेॅ लागतोॅ छूत

देही घुसतोॅ झुपरा भूत

दूरै सें लै दुआ-सलाम

घरैं रहोॅ मतु घूरोॅ गाम

बिरनी-छत्ता गाछ बिरीछ

रात अन्हरिया बाघिन रीछ ;


        भरलोॅ धुआँ डहोॅर लागे छै

        बाबू हो, बाबू हो, डोॅर लागे छै l


कथी केॅ डोॅर नुनू, कथी केॅ डोॅर

सब्भै आपनोॅ आपनोॅ घोॅर

सूनोॅ सूनोॅ हाट-बजार

कठिन काल सें छै लाचार

जबलेॅ रहभेॅ भीतर घोॅर

कथी केॅ डोॅर नुनू, कथी केॅ डोॅर ;


        गाछें माहुर फोॅर लागे छै

        बाबू हो बाबू हो, डोॅर लागे छै l

        *

             

बाबू हो, बाबू हो, डोॅर लागे छै | अंगिका कविता | शम्भुनाथ मिस्त्री
Babu Ho,Babu Ho, Dor Lagai Chhai | Angika Kavita | Shambhunath Mistry

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