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Monday, August 31, 2020

देश जरै छै | Angika Kavita | अंगिका कविता | Desh Jaraie Chhai | रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal

Angika Kavita | अंगिका कविता
देश जरै छै | Desh Jaraie Chhai
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal

 

माथो चढि कें मौगी नाचे छै
कोंटा में माय कानै छै
हुन्नें रूज लिपस्टिक सजै छै
फाटले सङिया माय सिये छै ।
देश जरै छै ।


ईत्र के खुसबू सगरै उङै छै
बहुरंगिया सूट सजै छै
अंचरा माय लोर पोछै छै
बारी सें गोयठो चुने छै ।
देश जरै छै ।


खेत-बारि बेची माय पढैलकै
पसंदे बेटां बिहा करलकै
बचलो-खुचलो बहूं ने बेचलकै
करेजा मांय पत्थर धरलकै ।
देश जरै छै ।


नया-नया फैशन रोजे गढे छै
शहरो में हिन्नें-हुन्नें घुरे छै
खुब्बे रे गुप-चुप चाट उङाय छै
भुंजा फाॅकि कें माय जिये छै ।
देश जरै छै ।


आधो उघारो कपङा पिन्हे छै
बाॅकी देह उघारे घुरै छै
केकरा देखाय छै की चाहे छै
कपसी- कपसी माय जिये छै ।
देश जरै छै ।

 31-8-2020

 Angika Kavita | अंगिका कविता
देश जरै छै | Desh Jaraie Chhai
रामनंदन विकल | Ramnandan Vikal

 


 

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