Angika Kavita | अंगिका कविता
आय तोरा सजैबौं | Aay Tora Sajaibaun
रामचंद्र घोष | Ramchandra Ghosh
आपनों दुखौ के लोरौ सँ आय
सजैबौं तोरौ सोनो के थाल माँ !
तोरौ गुन गाबी - गाबी दिन - रात
गूँथबौं तोरौ कंठौ के मोती - हार !
तोरौ गोड़ौ में सोभै चान - सुरुज माला
तोरौ छाती पर हमरौ लोरौ के गहना
सभे धौन - धान तोरे किरपा हे जननी !
एकरा सँ हमरा की लेना - देना ?
तोरा जे देना रहै दा , जे लेना से ला
हमरा लग आपनों दुख घरौ के धौन
हय दुखौ सँ बहै आँखीं सँ लोर
सजैबौं लोरौ सँ तोरौ सोनों के थाल !
चीन्है - जानै छौ तों सभे सूचा रतन
तोरौ किरपा - परसाद मिलै हरदम
सब दुख हरै छौ पल - छन में
गरब सँ छी हम्में फुली के कुप्पा !
सौजन्य : गीतांजलि ( कवीन्द्र रवीन्द्र )
अंगिका अनुवाद : रामचन्द्र घोष
31-8-2020
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