आँख मिचौनी | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Aankh Michouni | Angika Kavita | Ramchandra Ghosh
चली रहलौ छै आय
आँख मिचौनी के खेल
धूप - छाँव
धानौं के खेतों में !
के खोली देलकै
बगबग उजरौ मेघौ के नाव
नीलौ सरंगों मे ?
भुली गेलै भौराँ सिनी आय मधुपान
सुधि - बुधि खोय
उड़ी फिरी रहै जन्नैं - तन्नैं
सुरजौ के किरनों में गेलै मताय !
कैन्हें गगलै आय
चकवा - चकवी के जुगल जोड़ी
लद्दी किनाराँ हय रं ?
हे जी !
नैं लौटबौं आय हम्में
आपनों घौर - दुआर
लुटबै सौंसे ब्रह्मांड केरौ सब्भे धौन आय
सरंग भेदी !
केना खिलखिलाय हाँसै आय
मतैलौ हवा - बतास ?
फुटलै फुलौ के फेन
सागौ के पत्ता - पत्ता में !
हेनाँय बाँसुरी बजाय - बजाय
गुजारबै हम्में दिन - रात आय
नैं लौटबौ आपनो घौर - दुआर !
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सौजन्य : गीतांजलि ( रबीन्द्रनाथ टैगोर )
अंगिका अनुवाद : रामचन्द्र घोष
आँख मिचौनी | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Aankh Michouni | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh
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