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Sunday, June 21, 2020

अखनी | Akhni | अंगिका कविता | अरूण कुमार पासवान | Angika Kavita | Arun Kumar Paswan

 

Angika Kavita | अंगिका कविता
अखनी | Akhni
अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan

निम्मर काठो के कीड़ा खाय,
          बौका रो बहू सब रो भौजाय,
जे खेतो रो जोगवारो कमजोर,
          होकरो फसल ते लुटिये जाय।
ईमानदारी रो युग नै रैल्है आबे,
           धूर्त-बैमान सगरे पूजलो जाय,
आपनो गरज पर जे मिट्ठो बोले,
           पीछू वहे अनचिन्हार भै जाय।
बाहर में कुच्छु,अंदर आरो कुच्छु,
           केना के भरोसो करलो जाय,
आदमी के समझना बड़ी मुश्किल,
            भल्हें भगवान चिन्हलो जाय।
केकरा-केकरा परखते रहे आदमी,
            सब लोगें ते बस रंगे देखाय,
हाथ जोड़ी वोट लै,जीती इलेक्शन,
            पाँच साल तक राजा भै जाय।
जात-धरम रो बात जे होय छै रोज़,
            हेकरो असलियत दीहौं बताय,
दूए टा जात छै अखनी है दुनियाँ में,
            एक धनी एक निर्धन कहलाय।
                                            ***
                       अरुण कुमार पासवान
                            20 जून,2020
 

Angika Kavita | अंगिका कविता
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अरूण कुमार पासवान  | Arun Kumar Paswan

 




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