गीत | अंगिका कविता | कैलाश झा किंकर
|Geet | Angika Kavita | Kailash Jha Kinkar
केकरो तोड़ने टुटतै नै।
अंग-अंगिका मिटतै नै।।
आपस मे सब कत्ते लड़लै
लड़तें-लड़तें कत्ते मरलै
लेखक-कवि के अहम् भावना
राख बनी के धरले रहलै ।
मठाधीश सब आग लगाबै
आदत ओक्कर छुटतै नै ।
केकरो लिखै के गुमान छै
केकरो बिकै के गुमान छै
पाणिनी ते फेल भेलै आब
अलगे दिखै के गुमान छै।
गीत | अंगिका कविता | कैलाश झा किंकर |Geet | Angika Kavita | Kailash Jha Kinkar
पागल बेटा देखी-देखी के
मैयो छाती कुटतै नै ।
गाम-घरो मे हँसै अंगिका
कोटि कंठ मे बसै अंगिका
भैंस-गाय चरबै वाला भी
बहियारो मे रचै अंगिका
अष्टम सूची मे जोड़ै लै
अंग-अंगिका बँटतै नै।
केकरो तोड़ने टुटतै नै
अंग-अंगिका मिटतै नै।
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