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Monday, February 11, 2019

गीत | अंगिका कविता | कैलाश झा किंकर |Geet | Angika Kavita | Kailash Jha Kinkar

गीत | अंगिका कविता | कैलाश झा किंकर 
|Geet | Angika Kavita | Kailash Jha Kinkar

केकरो तोड़ने टुटतै नै।
अंग-अंगिका मिटतै नै।।


आपस मे सब कत्ते लड़लै
लड़तें-लड़तें कत्ते मरलै
लेखक-कवि के अहम् भावना
राख बनी के धरले रहलै ।


मठाधीश सब आग लगाबै
आदत ओक्कर छुटतै नै ।


केकरो लिखै के गुमान छै
केकरो बिकै के गुमान छै
पाणिनी ते फेल भेलै आब
अलगे दिखै के गुमान छै।

 

गीत | अंगिका कविता | कैलाश झा किंकर |Geet | Angika Kavita | Kailash Jha Kinkar


पागल बेटा देखी-देखी के
मैयो छाती कुटतै नै ।


गाम-घरो मे हँसै अंगिका
कोटि कंठ मे बसै अंगिका
भैंस-गाय चरबै वाला भी
बहियारो मे रचै अंगिका


अष्टम सूची मे जोड़ै लै
अंग-अंगिका बँटतै नै।
केकरो तोड़ने टुटतै नै
अंग-अंगिका मिटतै नै।



Angika Poetry - Angika Geet | अंगिका गीत

Poet - Kailash Jha Kinkar | कैलाश झा किंकर

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