अंग जल
गजल -३५
— सुधीर कुमार प्रोग्रामर —
भोर होलै जगो, जगाबोॅ ते
घोंसला प्रेम के बनाबोॅ तेॅ।
है धरा धर्म के बगीचा मेॅ
गीत गोबिन्द के सुनाबोॅ तेॅ।
खूब फरतै हँसी-खुषी सगरेॅ
नेह के गाछ जों लगाबोॅ तेॅ।
देह के खून सब जरै-तॅ जरै
प्रेम के दीप टा जलाबोॅ तेॅ।
ई तिरंगा सरंग सॅ ऊचो छै
गाण सरहद के जोॅ सुनाबोॅ तेॅ।
Angika Poetry / Gazal : Ang Jal / अंग जल
Poet : Sudhir Kumar Programmar / सुधीर कुमार प्रोग्रामर
Angika Gazal Collection / अंगिका गजल संग्रह - अंग जल

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