अंग जल
गजल -३२
— सुधीर कुमार प्रोग्रामर —
होतै वहा जे होना होतै
जे जे चाहबै ओना होतै।
धरती के उटकी-पैची केॅ
ढेला, गरदा सोना होतै।
अैलो गेलो के हाँथों मेॅ
जलखै भरलो दोना होतै।
खुषहाली घर के चौकठ तक
चक-चक कोना-कोना होतै।
अगहन मेॅ पोथी बतलाबै
राही जी के गौना होतै।
Angika Poetry / Gazal : Ang Jal / अंग जल
Poet : Sudhir Kumar Programmar / सुधीर कुमार प्रोग्रामर
Angika Gazal Collection / अंगिका गजल संग्रह - अंग जल

No comments:
Post a Comment