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Wednesday, August 19, 2020

हमरौ विनती सुनौ | Angika Kavita | अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष | Hamrow Vinati Sunow | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh

 


हमरौ विनती सुनौ| अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Hamrow Vinati Sunow | Angika Kavita | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh


हे परभु जी !
हमरौ विनती सुनौ !

हमरौ सौंसे गुमान
हमरौ आन बान शान
हमरौ आँखीं के लोरौ में डुबाय दौ !

आपनो करनी करौ झुठ्ठे बखान
हमरा नैं सुहाबै छै
एकरा में हमरो छोटाहापन ही
झलकै छै
आपने सुआरथौ में हर बखत घूमी घूमी
हम्में दिन - रात मरै छी
हय हम्में की करै छी
हे परभु ! हमरा तारौ
ई जंजाल सें उबारौ
हमरौ सौंसे गुमान
हमरौ आँखीं के लोरौ में डुबाय दौ !

खाली आपने कामों करौ हरदम गुणगान
इत्यो टा नैं अच्छा !
हमरौ ई तुच्छ जिनगी हुए
तोरौ इच्छा पूर्ति करौ माध्यम
दा हमरा ई भिक्छा !
हमरौ रूआँ - रूआँ होय जैतै धन्न !
जिनगी में बसतै चरम शांति
हमरौ परानों में दमकतै तोरे परम कांति !
हमरा अँधरौ गुमानों से बचाबो
हमरौ हिरदय - कमल में तों ठाड़ो होय जा !
हमरौ सब्भे गुमान
हमरौ आँखीं के लोरौ में डुबाय दौ !

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मूल रचना कवींद्र रवींद्र नाथ टैगोर

अंगिका अनुवाद : रामचन्द्र घोष


हमरौ विनती सुनौ| अंगिका कविता | रामचन्द्र घोष
Hamrow Vinati Sunow | Angika Poetry | Ramchandra Ghosh


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