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Wednesday, May 3, 2017

नदी नदी समुंदर

-- कुंदन अमिताभ -- 

मिली गेलै ई गरदा हवां मं॑ ऐना
नदी-नदी के बूंद समुंदर म॑ जेना ।।

नदी जब॑ समुंदर म॑ मिलै छै
त॑ नदी कहाँ रहै छै
नदी केरऽ हर बूँद मिलला के बाद
समुंदर के ही हिस्सा  बनी जाय छै
नदी चलतें रहै के नाम छेकै
समुंदर अडिगता, स्थिरता के
समुंदर म॑ सब कुछ छै
नदी भी, पहाड़ भी
झाड़ भी, झंखाड़ भी ।


इंसान जब॑ भक्ति मं॑ लीन
ईश्वर क॑ समर्पित होय जाय छै
त॑ इंसान कहाँ रहै छै
वू त॑  भगवान बनी चुकलऽ रहै छै ।

नदी सागर मं॑ मिली क॑
पाबै छै कि ओकरऽ
कण-कण सागर छेकै
ईश्वर भक्ति म॑
भगवान क॑ समर्पित हर इंसान
पाबै छै कि ओकरऽ कण-कण
म॑ ही भगवान समैलऽ छै ।

नदी - नदी समैलऽ समुंदर
कण-कण भगवान अंदर ।


Angika Poetry : नदी-नदी समुंदर
 Poetry from Angika Poetry Book :
 Poet : Kundan Amitabh
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